Why Surrender is mandatory in Bhakti Sanatan Dharma Hindi
भक्तो के लिए भोले है शिव और दुष्टों के लिए भाले है भंडारी
जब हम भक्ति करते है भोले की. तो आत्मसमर्पण कर देते है महाकाल को. हम तो हो गये आश्रय महाकाल के और महाकाल को हो गयी चिंता अपने भक्तो की.
जी हाँ अगर आप ने महाकाल को समर्पण कर दिया तो यकीं मानिए हर हालत में आपकी चिंता तो आपकी रहेगी ही नहीं. वो तो हो गयी महाकाल की.
भक्ति की वस्तविकता यही है की यदि आप समपर्ण भाव से और प्रेम से इश्वर को याद करते है तो आपका जो भी काम हो वो स्वय इश्वर ही वहन करते है. यही उस इश्वर की मर्यादा है जिसको वो स्वयं भी कभी खंडित नहीं करते,..
भक्ति में आत्मसमर्पण क्यों जरूरी है
इस संसार में महाकाल की भक्ति के अलावा कुछ है भी नहीं, ये भक्ति ही एक ऐसा अमोघ साधन है की अपने भक्तो को पूर्ण रूप से शांति और सुख प्रदान करती है. भक्ति में तो भगवान स्वयं बोलते है की नाम की भक्ति से मैं भक्त के बिलकूल अधीन हूँ, इसमें मुझे कोई छुट नहीं है, भक्त जन मुझ से प्यार करते है और मैं उनसे. भगवान् भोले नाथ इतने दयालु है की जरूरत पड़ने पर अपने भक्त के नौकर तक बन जाते है और ये बात एक बार नहीं कई बार और कई कथाओं में सिद्ध हुई है केवल बोलने के लिए नहीं है ये. इसीलिए भक्ति सर्वोपरि है.
Bhakti mein Atamsamarpan kyon jaroori hai
भक्ति में आत्मसमर्पण क्यों जरूरी है – Bhakti mein Atamsamarpan kyon jaroori hai – Why Surrender is mandatory in Bhakti Sanatan Dharma Hindi
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