मनुष्य जीवन के 16 संस्कार ( 16 Rituals of Human Life )
शास्त्रों के अनुसार
मनुष्य जीवन को
निर्वाह करने के लिए आवश्यक नियम बनाए गए हैं, जिनका पालन करना हर मनुष्य के लिए आवश्यक माना गया
है. ये नियम संस्कार के रूप में
जाने जाते है. ये संस्कार मनुष्य के जन्म से लेकर
मृत्यु तक अलग अलग समय पर किये जाते हैं. संस्कार का
अर्थ शुद्धिकरण माना गया है. शरीर के
उत्थान के लिए ऋषियों ने संस्कार का प्रावधान किया है. सनातन
धर्म के अनुसार हमे अपने जीवन में 16 संस्कारों को
अपनाना होता है. इन
संस्कारों को करने का मूल अर्थ यह है कि मनुष्य ने पिछले जन्म में जो पाप किये हैं, उनका प्रभाव इस जन्म में न पड़े. साथ ही इन सोलह संस्कारों को पूरा करके हम अपने इस जन्म को बेहतर बना सकते हैं. CLICK HERE TO KNOW मांग में सिंदूर क्यों भरती है सुहागन ...
Har Kisi ke Jivan mein Jruri Pavitra 16 Sanskar |
अगर ईश्वर खुद मृत्यु लोक
में अवतार लेते है तो उन्हें भी इन संस्कारों का पालन करना पड़ा था. ऋषि वशिष्ठ
ने भगवान राम के तो ऋषि संदीपनी जी ने श्री कृष्ण के सभी संस्कारों को पूर्ण करने में अहम योगदान दिया था. ये संस्कार हमें समाज के साथ
कदम से कदम मिलाकर चलने की सीख देते हैं. सदियों से
संस्कारों का पालन करने का नियम चला आ रहा है. इन
संस्कारों का अपना ही एक महत्त्व है, इन संस्कारों का निर्वाहन न करने वालों का जीवन पूरा नही माना जाता है.
कुछ ऐसे लेख है जहाँ 48
संस्कारों का वर्णन है तो महर्षि अंगीरा के अनुसार 25 संस्कार उल्लेखित किये गए है
किन्तु महर्षि मुनि वेद व्यास द्वारा रचित स्मृति शास्त्र में 16 संस्कारों का ही
वर्णन किया गया है और वे निम्नलिखित है.
सोलह संस्कार ( 16 Rituals ) :
- गर्भाधान संस्कार ( Garbhadhan ) : सभी माता पिता की यह इच्छा होती है कि उनकी होने वाली संतान संस्कारी और जीवन भर खुशहाल रहे. गर्भाधान संस्कार ऐसा संस्कार है जिससे हमें योग्य, गुणकारी, आदर्श और सदा खुशहाल रहने वाली संतान प्राप्त होती है. शास्त्रों के अनुसार मनचाही संतान के लिए गर्भधारण संस्कार को अपनाना पड़ता है. गृहस्थ जीवन में प्रवेश करने के बाद पहले कर्तव्य के रूप में गर्भाधान संस्कार को पहली मान्यता दी गई है जिसमें दंपति का मुख्य उद्देश्य संतान को जन्म देना होता है. उत्तम संतान प्राप्ति के लिए माता -पिता को गर्भाधान के लिए अपने तन और मन की पवित्रता बनाये रखने की आवश्यकता होती है. CLICK HERE TO KNOW क्यों दान दिया जाता है मृतक का सामान व बिस्तर ...
हर किसी के जीवन में जरूरी पवित्र 16 संस्कार |
- पुंसवन संस्कार ( Pumsvan ) : जब गर्भ ठहर जाये तब माता के चारों तरफ के वातावरण को महिला के अनुसार
ही रखना चाहिए, गर्भावस्था के दौरान महिला का
व्यवहार थोड़ा चिड़चिड़ा हो जाता है. महिला के खान पान, आचार, सोच विचार, बोल चाल, चिंतन, और भाव इत्यादि सभी को संतुलित बनाने की व्यवस्था की जानी चाहिए. गर्भ ठहरने के
तीसरे माह में विधिवत माता - पिता को पुंसवन संस्कार करना
होता है, उन्हें यह
समझाया जाता है कि किस तरह से
इस स्नास्कर को अपनाया जाता है, उनसे यह संकल्प करवाया जाता है कि शारीरिक, मानसिक दृष्टि से परिपूर्ण हो जाने के बाद उन्हें अपना वंश आगे बढना है और एक सुन्दर सुशील और तेजस्वी
संतान को जन्म देना है. यह संस्कार गर्भस्थ शिशु के मानसिक विकास की दृष्टि से मुख्य माना
जाता है. इस संस्कार को शुभ नक्षत्र में सम्पन्न किया जाना बहुत जरूरी है. पुंसवन संस्कार का उद्देश्य स्वस्थ, आदर्श, गुणकारी
एवं उत्तम संतान को जन्म देना है.
- सीमन्तोन्नयन संस्कार ( Seemantonayan ) : सीमन्तोन्नयन को सीमन्तकरण या
सीमन्त संस्कार के नाम से भी
जाना जाता है, साथ ही इसका अर्थ है सौभाग्यवान
संतान की प्राप्ति. सीमन्त संस्कार का मुख्य उद्देश्य यह है गर्भपात रोकना और
शिशु की रक्षा करना है. यह संस्कार गर्भ धारण के छठे से आठवे महीने में किया जाता है. इस संस्कार में गर्भस्थ महिला का मन खुश रखना चाहिए इसके
लिए शादीशुदा महिलाएं गर्भस्थ महिला की मांग भरती है.
Important Sacred 16 Rites in Everyone’s Life |
- जातकर्म संस्कार ( Jatakarma ) : जातकर्म संस्कार नवजात शिशु के
नालच्छेदन से पहले किया जाता है. संसार में आने वाले बालक को मेधा, बल एवं दीर्घायु के लिये गुरु मंत्र के साथ स्वर्णप्राशन
कराया जाता है. दो
बूंद घी तथा पाँच बूंद शहद का मिश्रण चटाने के बाद पिता प्रार्थना करते हैं कि उनका बालक बुद्धिमान होने के
साथ साथ ताकतवर, स्वस्थ और लम्बी उम्र वाला हो.
- नामकरण संस्कार ( Nama
– Karana ) : बालक के जन्म के बाद सबसे
पहले जिस संस्कार को अपनाया जाता है वोनामकरण कहलाता है. देखा जाये तो जन्म के बाद पहले जातकर्म संस्कार को अपनाया जाता है, किन्तु आज की बदली जीवनशैली और सोच में
जातकर्म संस्कार को कम ही अपनाया जाता है. नामकरण संस्कार को इसके नाम से ही जाना जाता है क्योकि इसमें जन्मे शिशु का नाम रखा जाता है, उस
बालक को एक नाम दिया जाता है जिससे उसकी पहचान बने.
- निष्क्रमण संस्कार ( Nishkramana ) : निष्क्रमण संस्कार का अर्थ है कि शिशु का बाहर निकलना. निष्क्रमण संस्कार में सूर्य और
चंद्रमा की रोशनी में शिशु को पहली बार घर से बाहर निकलने का विधान है. इस
संस्कार के पीछे शिशु को तेजस्वी और दिल
का नर्म बनाने की सोच निहित होता है. सूर्य और चंद्रमा की रौशनी में पहली बार शिशु बाहर निकलकर देवी - देवताओं
के दर्शन कर उनसे आशीर्वाद प्राप्त करता है. देवी देवता शिशु को दीर्घ आयु
होने व यशस्वी जीवन
का आशीर्वाद देते हैं.
सनातन परम्परा के सोलह संस्कार |
- अन्नप्राशन संस्कार ( Annaprashana ) : अन्नप्राशन संस्कार में शिशु को तरल
पदार्थ के अलावा अन्न अथवा भोजन देना शुरू कर दिया जाता है. अन्नप्राशन तब शुरू किया जाता है जब बालक के दांत निकलने शुरू हो
जाते हैं. दांत निकलने के बाद न सिर्फ उसे पीने बल्कि खाने के भी अनेक पदार्थ
दिए जाते है.
- मुंडन संस्कार ( Chudakarna
or Mundan ) : शिशु के सिर से बालों को जब पहली बार उतारा जाता है तो इस संस्कार को
मुंडन संस्कार कहा जाता है. सनातन धर्म में यह प्रचलित है कि बालक की आयु एक वर्ष से
पाँच वर्ष होने तक शिशु का मुंडन अवश्य करा लेना चाहिए.
- विद्यारम्भ संस्कार ( Vedarambha ) : मुंडन संस्कार के बाद अगले संस्कार में विद्यारम्भ संस्कार को अपनाया
जाता है. जब शिशु की उम्र शिक्षा प्राप्त करने लायक हो जाये तब विद्यारम्भ संस्कार प्रारंभ कर
देना चाहिए. इस संस्कार में एक समारोह का आयोजन किया जाता है. ताकि बच्चे में शिक्षा के प्रति जागरूकता लायी जा सके. बच्चे के माता - पिता को भी उनके
कर्मों के प्रति समझाया जाता है. विद्या किसी भी
बच्चे की उन्नति का साधन है. विद्यारम्भ संस्कार
को शुभ मुहर्त में करना चाहिए.
Solah Sanksar Kyo Banaye Gaye |
- कर्णवेध संस्कार ( Karn
- Vedha ) : कर्णवेध संस्कार के पीछे तो एक वैज्ञानिक आधार भी है. कर्णवेध
संस्कार का मूल उद्देश्य बालक की शारीरिक कठिनाइयों से रक्षा करना है. कर्णवेध संस्कार में कानों को आभूषण पहनने के लिए छेदा जाता है, जिससे सौन्दर्यबोध होता है. कान
हमारे श्रवण द्वार हैं तो इससे कानों की सुनने की शक्ति में भी इजाफा होता है.
- उपनयन या यज्ञोपवीत संस्कार
( Upanayan ) : यज्ञोपवीत अर्थात उपनयन
संस्कार में जनेऊ धारण किया जाता है. मुंडन व पवित्र जल में नहाने के बाद इस संस्कार को अपनाया जाता है. यज्ञोपवीत एक पवित्र धागा होता है जो सूत से बना होता है, इस धागे
को बाएं कंधे के ऊपर से दाईं भुजा के नीचे की ओर करके पहना जाता है.
- वेदारंभ संस्कार ( Vedarambha ) : वेदारम्भ संस्कार अपने नाम से ही जाना जाता है. यह संस्कार ज्ञान प्राप्त करने से संबंधित है. शास्त्रों के अनुसार वेदों के ज्ञान ही सर्वश्रेष्ठ है. जिसे प्राप्त करने के लिए बच्चे को
गुरुकुल भेजा जाता था. वेदारम्भ संस्कार मनुष्य के जीवन
में विशेष महत्व रखता है. यज्ञोपवीत
के बाद बालकों को वेदों का अध्ययन एवं विशिष्ट ज्ञान से परिचित कराना होता है.
Naamkaran Annprashan Mundan Antyeshthi Sanskar |
- केशांत संस्कार ( Keshanta ) : गुरुकुल में वेद का ज्ञान प्राप्त करने के बाद केशान्त संस्कार को
आचार्य के सामने पूरा किया जाता था. वेद पुराणों के
साथ - साथ अन्य विषयों
में परिपूर्ण होने के बाद आचार्य के सामने छात्र को स्नातक की उपाधि दी जाती
थी. केशान्त संस्कार में गुरुकुल से विदाई लेने और
गृहस्थ जीवन में प्रवेश करने को बताया है.
- समावर्तन संस्कार ( Samavartan ) : समावर्तन संस्कर गुरुकुल से विदाई लेने से पूर्व किया जाता था. इसमें सुगन्धित पदार्थों एवं औषधि युक्त जल से भरे हुए आठ घडों के जल से स्नान कराने
का नियम है. यह स्नान विशेष गुरु मंत्र के साथ किया जाता था. इसके
बाद शिष्य ब्रह्मचारी जनेऊ का त्याग करता है जिसे यज्ञोपवीत के समय धारण किया जाता था. इस उपाधि से शिष्य को गृहस्थ आश्रम
में प्रवेश करने लायक मान लिया जाता था. शिष्य को अच्छे कपडे व आभूषण पहनाकर घर के
लिए विदा कर दिया जाता था.
- विवाह संस्कार ( Vivaha
or Marriage ) : पुराने समय से ही विवाह संस्कार स्त्री और पुरुष दोनों के लिये सबसे ख़ास संस्कार माना
जाता है. लगभग
पच्चीस वर्ष तक ब्रह्मचर्य का पालन करने के बाद विवाह संस्कार को अपनाया जाता
है. वैदिक काल के आरंभ होने से पहले समाज संगठित
नहीं था तब समाज में महिलाओं का बहुत शोषण
होता था. हमारे पूर्वजों ने इसे समाप्त करने के लिये विवाह संस्कार
की स्थापना की थी. ताकि समाज को संगठित एवं नियमबद्ध किया जा सके जिसे आज हम देख सकते है.
- अंत्येष्टि संस्कार ( Antyeshthi ) : अंत्येष्टि संस्कार को अग्नि परिग्रह या
अंतिम परिग्रह संस्कार भी कहते है. हिन्दू धर्म में किसी की मृत्यु हो
जाने पर उसके शरीर को सभी विधि विधान के साथ अग्नि में चिता बनाकर जलाया जाता
है. जब तक मनुष्य शरीर धारण कर पृथ्वी पर निवास
करता है तब तक वह अलग अलग बंधनों से बंधा रहता है. प्राण खत्म होने के
बाद ही वो मोक्ष या निर्वाण को प्राप्त करता है. अंत्येष्टि संस्कार से हर मनुष्य को
गुजरना ही पड़ता है, क्योंकि जिस मनुष्य ने जन्म
लिया है उसका मरण भी अवश्य होगा और मरण होगा तो अंत्येष्टि भी
होगी.
मनुष्य जीवन के लिए जरूरी
इन सोलह संस्कारों के बारे में अधिक जानने के लिए आप तुरंत नीचे कमेंट करके
जानकारी हासिल कर सकते हो.
16 Sanskaar |
सनातन परम्परा के सोलह
संस्कार, Solah
Sanksar Kyo Banaye Gaye, 16 Sanskaar, Naamkaran Annprashan Mundan Antyeshthi Sanskar
YOU MAY ALSO LIKE
No comments:
Post a Comment