दिवाली के दिन जुआ खेलने
की परंपरा ( Tradition of
Gambling on Deepawali )
सभी पर्वों और त्योहारों
की अपनी अपनी कुछ ख़ास परम्पराएँ और रिवाज होते है जिनके कुछ ना कुछ सकारात्मक व
नकारात्मक पक्ष भी अवश्य होते है. ऐसी ही एक रोचक परंपरा दिवाली पर्व से भी जुडी
हुई है और लोगों का मानना है कि दिवाली के पर्व पर देवी माता पार्वती और महादेव शिवजी
ने जुआ खेला था. उसी दिन से ये परम्परा भी बन गयी, लेकिन किसी भी ग्रंथ में या साहित्य में उनके इस तरह
जुआ खेलने का कोई ठोस प्रमाण नहीं मिला है. CLICK HERE TO KNOW दिवाली के टोने टोटके ...
Diwali par Juaa Kyon Khela Jata Hai |
वैसे तो जुये को एक ऐसा
खेल माना जाता है जो घर का नाश और हानि करता है, इससे सिर्फ मनुष्य ही नहीं भगवान तक आहात है और
महाभारत जैसा भयंकर युद्ध इस जुये की ही दें था. ये खेल सामाजिक बुराईयों का रातिक
है फिर भी असंख्य लोग इसे खेलते है. आज जुआ खेलने के अनेक तरीके विकसित हो चुके है,
अर्थात कुछ लोग ताश से जुआ खेलते है तो कुछ नुम्बरों से किन्तु पहले
चौसर को जुये का खेल माना जाता था. आज हम आपको जुये के कुछ ख़ास किस्सों और उनमे
आये परिवर्तनों के बारे में बताएँगे.
राजा नल बने रंक ( Story of King Nal ) :
महाभारत के ही एक पात्र
थे राजा नल, वे
चक्रवर्ती सम्राट होने के साथ साथ दमयंती से बेहद प्रेम करते थे, दमयंती भी उन्हें बहुत प्रेम करती थी. एक दिन ऐसे ही वे अपने रिश्तेदारों
और मित्रों के साथ चौसर का खेल खेलने लग गए. शुरुआत में सोने की मोहरों को दांव पर
लगाया गया. फिर बारी आई खजानों की. इतना धन देखकर राजा नल के रिश्तेदारों में कपट
आ गया और उन्होंने महल, राजपाठ और यहाँ तक की सेना को भी
दांव पर लगवा लिया. राजा नल धीरे धीरे अपना सब कुछ हारते गए. कुछ देर में उनकी
हालत ऐसी हो गई कि उन्हें अपने तन के कपडे भी दांव पर लगाने पड गये और वे उन्हें
भी हार गए. इस तरह एक चक्रवर्ती सम्राट जुए के कारण रंक बना, इसके बाद अपने साम्राज्य को वापस अपना बनाने के लिए राजा नल ने बहुत
संघर्ष किया. CLICK HERE TO KNOW रामायण महाभारत का एक अंतर ...
दिवाली पर जुआ क्यों खेला जाता है |
पत्नी और सम्मान तक हार
गए पांडव ( Story of
Mahabharata ) :
महाभारत से कौन अनजान है, कोई नहीं और उसका चौसर वाला भाग
तो उन पाठों में से है जिसे कोई नहीं भुला सकता. उस पाठ का केंद्र ये खेल जुआ ही
था, जिसकी रचना दुर्योधन और शकुनी के कपटी दिमाग की उपज थी.
इस खेल के दौरान पहले युधिष्ठिर ने अपना राज्य इंद्रप्रस्थ हारा, फिर अपने भाइयों और खुद को भी हार गया. किन्तु दुर्योधन का प्रतिशोध और
कपट यहीं खत्म नहीं हुआ और उसने युधिष्ठिर को विवश किया कि वो द्रौपदी को दांव पर
लगाए. युधिष्ठिर उसे भी हार गया और भरी सभा में द्रौपदी का चीरहरण हुआ. यहीं नहीं
इसके बाद पांडवों को 13 वर्षों तक वनवास भी झेलना पडा और उसके बाद महाभारत जैसा
भयंकर युद्ध हुआ. अब आप इसी बात से अंदाजा लगा सकते हो कि ये खेल कितना भयंकर है.
महाभारत के दौरान भगवान
श्री कृष्ण ने अर्जुन को बताया कि युधिष्ठिर में सिर्फ एक अवगुण है और वो है जुआ
खेलने की आदत, अगर उसे
वो आदत ना होती तो वो अपने कर्मों और गुणों के दम पर भगवान का दर्जा पा लेता.
लेकिन उसके सभी गुणों को मात्र जुए का अवगुण खा गया.
ऐसे ही अन्य रोचक तथ्यों और
कथाओं के बारे में अधिक जानने के लिए आप तुरंत नीचे कमेंट करके जानकारी हासिल कर
सकते हो.
Why People Gambles on Deepawali Diwali |
दीपावली
वाले दिन जुआ खेले का पर्व, Diwali se Jude Riti Rivaj, Charavarti Raja Nal Kaise Bane
Rank, Diwali ki Raat Khele Chausar, Juaa, Chausar
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