प्राकट्य
स्थल ( Praaktya Sthal ) :
निधिवन
में बने विशाखा कुंड के साथ ही एक प्राकट्य स्थल बना हुआ है जिसे ठाकुर बिहारी जी
महाराज का प्राकट्य स्थल कहते है. मान्यताओं के अनुसार यहाँ धुरपद जनक और संगीत के
सम्राट स्वामी हरिदास जी महाराज स्वयं विद्ना से मधुर गायन किया करते थे. गायन में
वे इतने लीन हो जाते थे कि वे अपने तन मन की सुध तक खो बैठते थे. ठाकुर के प्रति
अपने अनन्य प्रेम से उन्होंने ठाकुर को प्रसन्न किया और बांके बिहारी ने उन्हें
उनके सपने में दर्शन दिए और स्वामी हरिदास जी से कहा कि मैं तुम्हारे साधना स्थान
में बने विशाखा कुंड के पास की जमीन में ही छिपा हूँ. CLICK HERE TO KNOW रहस्यमयी आलौकिक वृन्दावन का निधिवन ...
Thaakur Bihaari Ji Maharaaj ka Praaktya Sthal |
अपने
स्वप्न को आधार बनाते हुए हरिदास जी ने कुंड के पास अपने शिष्यों से खुदाई करवाई
जहाँ बिहारी जी थे, उनको निकालकर हरिदास जी ने उनकी सेवा पूजा आरम्भ की और तभी से इस स्थान को
ठाकुर बिहारी जी महाराज का प्राकट्य स्थल कहा जाने लगा. अब इस स्थान पर हर साल
बिहारी जी के लिए प्राकट्य समारोह रखा जाता है. जिसे सभी हर्सोल्लास और धूमधाम से
मनाते है. समय के साथ यहाँ ठाकुर जी का मंदिर बनाया गया, मंदिर
में प्राकट्य जी की मूर्ति भी स्थापित की गयी और आज सभी मंदिर में पूजा अर्चना के
लिए जाते है. इस मंदिर का नाम बांके बिहारी मंदिर है जो बहुत विख्यात और प्रसिद्ध
है. CLICK HERE TO KNOW श्री कृष्ण जन्म कथा और पूजन विधि ...
ठाकुर बिहारी जी महाराज का प्राकट्य स्थल |
संगीत
सम्राट स्वामी हरिदास जी महाराज की समाधि ( Trance of The King of Music
Swami Haridaas Ji Mahaaraj ) :
निधिवन
के परिसर में ही संगीत के सम्राट माने जाने वाले स्वामी हरिदास जी महाराज की समाधि
भी बनी हुई है. स्वामी जी श्री बांके बिहारी जी के लिए अपने पदों का वीणा से मधुर
गायन भी किया करते थे जिसे सुनने के बाद ना तो उन्हें खुद की सुध रहती थी और ना ही
सुनने वाले को अपना पता रहता था. अकबर के रत्नों में से एक तानसेन और प्रसिद्ध
बैजूबावरा भी तो स्वामी हरिदास जी के ही शिष्य थे.
एक
बार की बात है जब अकबर की सभा में सभी स्वामी जी के गायन की तारीफों के पुल बाँध
रहें थे, उनकी इतनी प्रशंसा सुनकर अकबर की इच्छा हुई कि स्वामी जी की संगीत कला का
आनंद लिया जाएँ और ये सोचाकर उन्होंने स्वामी जी को बुलाया और उन्हें गायन के लिए
कहा. तब स्वामी हरिदास जी ने कहा कि वे अपने ठाकुर जी महाराज के लिए ही गायन करते
है और उनके अलावा किसी अन्य के मनोरंजन के लिए गायन नहीं करेंगे और ये उनका
दृढ़निश्चय है.
संगीत सम्राट स्वामी हरिदास जी महाराज |
ऐसी
स्थिति में राजा अकबर खुद जन साधारण का वेश धारण करके तानसेन के साथ निधिवन आये और
हरदास जी की कुटिया में जा बैठे. तब तानसेन ने जान – बूझ कर वीणा उठायी और एक मधुर
पद का गायां आरम्भ किया. तानसेन की आवाज को सुनकर राजा अकबर उनके इतने मुग्ध हो
गये कि वे तानसेन के मुरीद हो गये. तभी वहां स्वामी हरिदास जी भी आये और तानसेन से
वीणा ले ली व स्वयं उसी पद का गायन करने लगे. साथ ही वे पद गायन में तानसेन से हुई
गलतियों को भी बताते गये. स्वामी जी का गायन इतना मधुर था कि अकबर पूर्ण रूप से
विस्मय हो गये, उन्हें खुद का कुछ नही पता था, वे ही नहीं बल्कि आसपास के सभी पशु पक्षी भी उनकी कुटिया के बाहर आ गये और
मौन भाव के साथ सभी पद का श्रवण करने लगे.
संगीत
सम्राट स्वामी हरिदास जी महाराज के और ठाकुर बिहारी जी महाराज के प्राकट्य स्थल के
बारे में अधिक जानने के लिए आप तुरंत नीचे कमेंट करके जानकारी हासिल कर सकते हो.
Dhurpad Janak Haridaas Ji ki Smaadhi |
Thaakur
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जी महाराज,
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Haridaas Tansen Kathaa
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