ल्योकोडरमा
( Leucoderma )
ल्योकोडरमा
को आम भाषा में सफ़ेद दाग का रोग भी कहा जाता है, असल में ये त्वचा रोग है
जिसमें रोगी के शरीर पर सफ़ेद रंग के निशान व चकते बन जाते है और यदि इनका सही समय
पर इलाज नहीं किया जाएँ तो ये समस्या पुरे शरीर में फ़ैल जाती है. शुरुआत में ये
रोग आम लगता है और इसकी शुरुआत हाथों, पैरों, होंठों या चेहरे से होती है
फिर ये दाग धीरे धीरे बड़े होते है और परेशानी का सबब बन जाते है. इस रोग का शिकार
मुख्यतः छोटे बच्चे होते है. अगर आयुर्वेद में देखते हो इस रोग का कारण पित्त दोष
होता है वहीं समाज इसे कुष्ट रोग की नजर से देखता है जोकि सरासर गलत है क्योकि
कुष्ट रोग में कैंसर और कोढ़ आते है और ये उनमे से कोई नहीं है. CLICK HERE TO KNOW त्वचा रोग के लिये आयुर्वेदिक इलाज ...
Safed Daag Hataane ka Ghrelu Aayurvedic Upchar |
शरीर
पर सफ़ेद दाग होने के कारण ( Causes of White Spot on
Skin ) :
· गैस ( Gastric Problems ) : अगर व्यक्ति के पेट में गैस
बनती है तो उसे ये रोग हो सकता है.
· लीवर ( Liver Disorder ) : जैसाकि आयुर्वेद भी कहता है
कि ये पित्त दोष की वजह से होता है इसलिए अगर किसी व्यक्ति का लीवर खराब है तो ये
रोग उसे भी अपना शिकार अवश्य बना लेता है.
· तनाव ( Tension ) : तनाव एक नहीं अनेक रोगों की
वजह होता है और ये शरीर पर बहुत बुरा प्रभाव डालता है. इसलिए हमेशा खुश और
सकारात्मक रहना चाहियें.
· जलना ( Burning ) : जब व्यक्ति जल जाता है तो
उसकी उपरी और अंदरूनी दोनों त्वचा जल जाती है, ठीक होने पर नयी त्वचा तो बन
जाती है किन्तु जले के निशान रह जाते है और वे इसी तरह के रंग के होते है. CLICK HERE TO KNOW चर्म रोग के कारण व उपचार ...
सफ़ेद दाग हटाने का घरेलू आयुर्वेदिक उपचार |
· आनुवंशिक ( Genetically ) : अनुवांशिक से तात्पर्य है कि
अगर ये रोग आपसे पहले आपके परिवार के किसी सदस्य को भी था तो उनसे ये रोग आपमें आ
सकता है.
· कैल्शियम की कमी ( Deficiency of Calcium ) : शरीर में पौषक तत्वों
मुख्यतः कैल्शियम की कमी भी इस रोग को बढ़ावा देती है.
· पेट में कीड़े ( Stomach Worms ) : एक शोध के अनुसार पाया गया
है कि व्यक्ति के पेट व पाचन तंत्र में कीड़े होने पर भी ल्योकोडरमा रोग हो सकता
है.
· खून में खराबी ( Blood Disorders ) : खून ना सिर्फ शरीर के हर
हिस्से में पौषक तत्वों को पहुंचाता है बल्कि ये शरीर को स्वस्थ बनायें रखने में
भी सहायक होता है. जितना साफ़ व शुद्ध खून होना उतना ही आपका रंग और त्वचा निखरेगी
और जितना अधिक ये विशुद्ध या खराब होगा उतना ही अधिक आपको चर्म रोग होने की
संभावना रहेगी. इसलिए अपने खून को सदा साफ़ रहें और इसके लिए जरूरी पौषक तत्वों से
भरा आहार ग्रहण करें.
ल्योकोडरमा का सफल इलाज |
ल्योकोडरमा
से मुक्ति के उपाय ( Remedies for Leucoderma ) :
§ पहला उपाय ( First Measure ) :
सामग्री
( Material Required ) :
- 800 ग्राम : गाय का देशी घी
- 650 ग्राम : खैर की छल
- 300 ग्राम : परवल की जड़
- 150 ग्राम : बावची
- 80 ग्राम : गूगल
- 40 – 40 ग्राम :
कुटकी, भृंगराज, जवासा
औषधि
बनाने की विधि ( Method of Preparation ) :
सबसे
पहले आपको खैर की छल और बावची को मोटा कुटना है, उसके बाद भृंगराज, परवल और जवासे को बारीक पिसना है. साथ ही आप गूगल को तोड़कर छोटे छोटे
हिस्सों में बाँट लें.
अब
आप एक बर्तन लें उसमें करीब 6.5 किलों पानी भरें, आप इसमें खैर की छल और बावची
को डालकर धीमी आंच पर पकने दें. जब बर्तन में 1.5 किलो ग्राम पानी रह जाएँ तो आप
बर्तन को आंच पर से उतारें और मिश्रण को छान लें. छानने पर आपको खैर की चाल और
बावची के पाउडर के अंश मिलेंगे, उन्हें आप कपडे से निचोड़ें.
जो काढा बना है उसको आप रात भर ठंडा होने के लिए रख दें.
अगले
दिन सुबह आपको ऊपर का साफ़ 1.5 किलों काढ़ा / पानी अलग निकाल लेना है और उसे एक पीतल
की कढ़ाही में 800 ग्राम देशी घी व बाकी का सारा सामान डालकार धीमी आंच पर पकाना है. आप बीच बीच में
कडछी को भी अवश्य हिलाते रहें, कुछ समय के बाद पानी उड़ने लगेगा और कढाई
में काले रंग का अंश दिखाई देने लगेगा.
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मिश्रण
की जांच करने के लिए आपको एक सलाई या धातु की किसी सिंक पर रुई को लपेटकर मिश्रण
को रुई पर उठाना है और उसे जलाकर देखना है, अगर मिश्रण को जलाने पर चटर
चटर की आवाज आयें तो समझे कि अभी मिश्रण पूरी तरह नहीं पका है, उसे और पकाएं, दोबारा रुई की मदद से जांचें और जब
चटर चटर की आवाज आनी बंद हो जाएँ तो आप आंच को बंद कर दें. इस प्रक्रिया में पानी
जल जाएगा और घी रह जाएगा. आप घी को एक अलग बर्तन में निकाल लें. आपको इस बात को भी
सुनिश्चित करना है कि मिश्रण जल न जाएँ. आप घी को किसी काले कांच की शीशी में
सुरक्षित रखें.
प्रयोग
विधि ( The Method of Use ) :
तैयार
घी को आप लगाने और खाने में इस्तेमाल कर सकते हो. अगर रोग की शुरुआत है तो आप इसे
कम मात्रा में इस्तेमाल करें अर्थात दिन में 1 ही बार इस्तेमाल करें वहीँ रोग के
अधिक फ़ैल जाने पर आप इसे दिन में 2 से 3 बार इस्तेमाल कर सकते हो.
Shrir par Hue Safed Daag Hatayen |
मात्रा
( Quantity ) :
अगर
बच्चों में इस रोग की समस्या है तो उन्हें 10 ग्राम से अधिक घी एक बार में खाने के
लिए ना दें. इसका सेवन धीरे धीरे त्वचा के सफ़ेद रंग को उसके प्राकृतिक रंग में
बदलने लगता है. अगर इस तेल को मसाज के रूप में इस्तेमाल करते वक़्त आपको जलन का
आभास होता है तो तुरंत इसका इस्तेमाल बंद कर दें. वहीँ अगर जलन नहीं होती तो आप
इसको शरीर पर लगाकर ऊपर से किसी पेड़ का पत्ता बंद लें इससे शीघ्र आराम मिलता है.
जब भी इस घी से जलन का आभास हो तो आप त्वचा पर नारियल का तेल अवश्य लगायें ताकि
आपको कुछ ठंडक का आभास हो सके.
§ दुसरा उपाय ( Second Measure ) :
सामग्री
( Material Required ) :
- सरसों का तेल : 250 ग्राम
- कच्ची साबुत हल्दी : 500
ग्राम
औषधि
बनाने की विधि ( Process of Making Medicine ) :
सबसे
पहले आपको हल्दी को मोटा कुटना है और उसे 4 किलो पानी डालकर उबालना है. जब पानी की
मात्रा 1 किलों रह जाएँ तो आप पानी को छान लें और उसे एक सुरक्षित स्थान पर रखें.
इसके बाद एक बड़ी लोहे की कढ़ाही लें और उसमें सरसों के तेल को डालें, साथ ही आप
इसमें उबला हुआ हल्दी का पानी भी डाल दें और मिश्रण को धीमी आंच पर पकने दें. इस
मिश्रण को तब तक पकने दें जब तक पानी उड़ ना जाएँ, एक समय ऐसा
आएगा जब कढ़ाही में नीचे कीचड सी बच जायेगी, उस वक़्त आपको
कढाई को आंच पर से उतरना हा और उसे ठंडा होने के लिए रखना है. ठंडा होने पर आप
मिश्रण में से तेल को सावधानी से अलग निकालें. इस तरह आपका तेल तैयार होता है.
Tvcha par Safed Daag Hone ke Karan |
प्रयोग
विधि ( Method of Use ) :
इसका
इस्तेमाल आप दिन में 2 बार शरीर पर मालिश के रूप में इस्तेमाल करें. जल्द ही शरीर
पर हुए सफ़ेद दाग पहले की तरह अपने प्राकृतिक रंग में तब्दील हो जायेगे.
§ अन्य उपाय ( Other Solution ) :
· तिल और बावची ( Sesame and Malaya Tea ) : आप 100 – 100 ग्राम
की मात्रा में दोनों सामग्रियों को लें और उन्हें बारीक़ पीस लें. तैयार पाउडर को
आप रोजाना सुबह 1 चम्मच पानी के साथ लें. ये पाउडर शरीर में गर्मी पैदा करता है इसलिए
अगर आपको शरीर में गर्मी का अहसास हो तो आप कुछ दिनों के लिए इस उपाय का प्रयोग
बंद कर दें और सामान्य हो जाने पर दोबारा प्रयोग को आरम्भ कर दें.
· बावची और इमली ( Malaya Tea and Tamarind ) : एक अन्य उपाय के अनुसार आप
सामान मात्रा में बावची और इमली को लें और उन्हें 5 दिनों के लिए पानी में भिगोकर रख दें. 5 दिन बाद उन्हें पानी से निकालें और छाया में सूखने के लिए रखे दें.
जब ये सुख जाएँ तो इसका एक लेप तैयार करें और उन्हें सफ़ेद दागों पर इस्तेमाल करें.
Chhua Chhut ki Bimari Nahi Hai Safed Daag |
· बावची और चित्रक्मुल ( Malaya Tea and Chitraklum ) : आपको 100 – 100 ग्राम
बावची और चित्रक्मुल को लेकर उसे कुटना है. इस चूर्ण को 2 चम्मच की मात्रा में दही
के साथ लेना है किन्तु दही को बनाने के लिए आप 1 कप पानी में 2 कप दूध मिलाएं और
उसे तब तक उबालें जब तक की सारा पानी उड़ ना जाएँ. इस दूध की आपको दही जमानी है. आप
चाहे तो इस दही में पानी मिलाकर तैयार लस्सी से भी चूर्ण का सेवन कर सकते हो. ऐसा
आपको प्रतिदिन करना है. अगर आपकी लस्सी में से मक्खन आ जाएँ तो आप उस मक्खन को
सफ़ेद दागों पर लगाएं.
· बथुआ ( Bathua ) : रोगी को हर दुसरे या तीसरे
दिन बथुए की सब्जी खानी चाहियें, साथ ही उन्हें बथुए का रस निकालकर उसे दाग
पर लगाने से लाभ मिलता है.
· अदरक ( Ginger ) : अदरक का रस रक्तशुद्धि के
लिए इस्तेमाल किया जाता है, ये रक्त संचार को भी नियंत्रित रखता है और शरीर को रोगों से लड़ने की शक्ति
भी प्रदान करता है, इसलिए रोग अदरक के रस का भी सेवन करें.
आप अदरक की पत्तियों का लेप बनाकर उसको भी इस रोग में इस्तेमाल कर सकते हो.
ल्योकोडरमा |
· अखरोट ( Walnut ) : रोगी इस रोग से बचने के लिए
अखरोट का भी प्रयोग कर सकता है. उसके लिए रोगी अखरोट की गिरी निकालें और उसका
पाउडर बनाएं, इसके बाद उसमें थोडा पाउडर डालकर उसका पेस्ट तैयार करें. अब इस पेस्ट को
शरीर के उन हिस्सों पर लगायें जहाँ सफ़ेद निशान हुए हो. जल्द ही निशान ठीक हो
जायेंगे.
· अनार ( Pomegranate ) : आप अनार की पत्तियाँ लें और
उसे छाया में सुखा लें अब आप उसका चूर्ण बना लें. इस चूर्ण को आप सुबह के समय ताजा
पानी के साथ 8 ग्राम की मात्रा में लें.
ल्योकोडरमा
या सफ़ेद धब्बों को हटाने के अन्य घरेलू आयुर्वेदिक उपाय तरीकों को जानने के लिए आप
तुरंत नीचे कमेंट करके जानकारी हासिल कर सकते हो.
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Daag Hataane ka Ghrelu Aayurvedic Upchar, सफ़ेद दाग हटाने का घरेलू
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