नवरात्रों
के नौ दिनों का वैज्ञानिक महत्व ( Scientific Importance of
the Nine Days of Navratri )
भारत
में पुरे वर्ष तरह तरह के उत्सव मनायें जाते है जैसेकि होली, दिवाली,
रक्षाबंधन, नवरात्रे इत्यादि. इनमें से कुछ
रात्री के समय मनाएं जाते है तो कुछ दिन में मनाएं जाने वाले त्यौहार है. किसी भी
त्यौहार में रात्री एक ख़ास स्थान रखती है क्योकि रात्री को ही सिद्धि का प्रतिक
माना गया है और जहाँ तक बात नवरात्रि की है तो वो भी 3 शब्दों से मिलकर बना है – नव + अहो + रात्रि अर्थात नौ
विशेष रातें.
जैसेकि आप भी जानते है कि नवरात्रों में नौ दिनों तक देवी मात्रा शक्ति के नौ
रूपों की पूजा अर्चना की जाती है. CLICK HERE TO KNOW माँ दुर्गा के पावन नवरात्रे ...
Navratron mein Ratri ka Mahtv |
प्राचीन
ऋषि मुनियों के अनुसार भी दिन की अपेक्षा रात्री ही सिद्धि और उपासना के लिए अधिक
उचित है और यही वजह है कि कुछ ख़ास त्यौहार जैसेकि दिवाली, होलिका दहन,
नवरात्रि और शिव रात्री को भी रात के समय ही मनाया जाता है. अब सोचने वाली बात ये है
कि रात्री को त्यौहार क्यों मनाएं जाते है, इसमें रात्रि का कोई ना कोई महत्व
तो होता ही होगा वर्ना इन त्योहारों के नामों को दिन के अनुसार
परिवर्तित कर देना चाहियें जैसेकि नवदिन. साल में 2 बार नवरात्रों का
पर्व मनाया जाता है पहला तो चैत्र माह शुक्ल पक्ष की पहली तारीख से
नवमी अर्थात नौ तारीख तक और दुसरा अश्विन माह के शुक्ल पक्ष की प्रथम तारीख (
प्रतिपदा ) से महानवमी ( विजय दशमी से एक दिन पहले तक ) तक मनाया जाता है.
नवरात्रों
का अध्यात्मिक महत्व ( The Spiritual Significance of Navratri ) :
अगर
साधना की दृष्टि से देखा जाएँ तो तो शारदीय नवरात्रों को कुछ अधिक महत्व दिया जाता
है क्योकि इन्ही दिनों में लोग अपनी इच्छाओं की पूर्ति और घर में सुख शान्ति के
लिए यज्ञ, पूजा, पाठ, व्रत, भजन, पूजन और योग साधना करते है. कुछ साधक तो इन नौ रातों में
पद्मासन या सिद्धासन में बैठ जाते है और आंतरिक त्राटक या बीज मन्त्रों का जाप
आरम्भ कर देते है ताकि उन्हें अनेक विशेष सिद्धियाँ प्राप्त हो
सके. इसके अलावा भी इन दिनों में शक्ति के 51 पीठों पर लाखों भक्त एकत्रित होते है
और पुरे उत्साह से उनकी उपासना करते है. जो उपासक देवी शक्ति जी के इन पीठों पर
आने में असमर्थ होते है वे देवी का अपने घर पर ही आह्वाहन करते है. CLICK HERE TO KNOW नवरात्रे के छठे दिन माँ कत्यायनी की पूजा ...
नवरात्रों में रात्रि का महत्व |
नवरात्रों
के प्रति बदलता नजरिया ( Changing View Towards Navratri ) : क्योकि नवरात्रे रात के पर्व
है तो इन्हें रात्री के समय मनाना चाहियें किन्तु आजकल कोई भी व्यक्ति रात के समय
पुरोहितों को बुलाकर देवी की पूजा अर्चना नहीं करता बल्कि दिन में ही सारा कार्य
करके संतुष्ट हो जाता है. जबकि ये गलत है, इसका कारण आलस है हममे से कोई
भी अपने आलस्य को नहीं त्यागना चाहता, सिर्फ साधक भी नहीं
आजकल तो पुरोहित भी ऐसे ही हो चुके है जो रात के समय जगराता नहीं करना चाहते और
साधक को दिन में ही सबकुछ करने की सलाह देते है. ये आत्मशक्ति की कमी को भी झलकाता
है, अगर कोई पूर्ण आत्मशक्ति, यौगिक
शक्ति और मानसिक शक्ति से रात के समय देवी की उपासना करता है तो उसे नौरात्रों में
की अपनी साधना उपासना का पूर्ण फल प्राप्त होता है.
ऋषि
मुनियों का नवरात्रों के प्रति नजरिया ( The Perception of Saint
Towards Navratri ) : साधारण मनुष्यों की जगह अगर
ऋषि मुनियों की बात की जाये तो वे जानते है कि नौरात्रों में राती का कितना महत्व
है और वे रात्री के समय अपने आध्यात्म और वैज्ञानिक दोनों पक्षों को ध्यान में
रखते हुए पूजा करते है. उन्हें पता होता है कि रात के समय प्रकृति के सारे अवरोध
दूर हो जाते है. यहाँ मजेदार बात ये है कि हमारे प्राचीन ऋषि मुनियों ने इन
रहस्यों को इतने पहले जान लिया था जबकि आज हमे ये सब विज्ञान की मदद से पता चलता
है.
The Importance of Nights in Navratri |
नवरात्रों
में देवी के नौ रूप ( Divine Nine Forms of Goddess Durga ) :
1. शैलपुत्री
2. ब्रह्मचारिणी
3. चंद्रघंटा
4. कुष्मांडा
5. स्कन्दमाता
6. कात्यायनी
7. कालरात्रि
8. महागौरी
9. सिध्दीदात्री
देवी
के हर रूप के लिए ख़ास व्रत सामग्री ( Special Vow Food Material
for Navratri ) :
देवी
के नौ रात्रों में देवी के अलग अलग रूपों का वर्णन है और उन्ही की उपासना होती है, हर देवी को
कुछ चीजें खासी प्रिय होती है और माना जाता है कि उपासक को अपने व्रत को खोलने के
लिए देवी की इन पसंदीदा चीजों व खाद्य पदार्थों का ही प्रयोग करना चाहियें. ये
चीजें नौ दिनों के अनुसार नीचे वर्णित है.
नवरात्री और नौ द्वारों का संबंध |
1. कुट्टू
2. दही व दूध
3. चौलाई
4. पेठा
5. श्यामक चावल
6. हरी तरकारी
7. काली मिर्च और तुलसी
8. साबूदाना
9. आंवला
नवरात्रों
में रात्री का महत्व ( Importance of Navratri ) :
अब
बात करते है कि रात्री के महत्व की, आपने ये तो खुद महसूस किया
होगा कि जब आप दिन में आवाज देते हो तो वो अधिक दूर नहीं जाती किन्तु जब रात को
आवाज दी जाती है तो वो निरंतर आगे बढती जाती है और आपकी आवाज की तरंगें दसों
दिशाओं में फ़ैल जाती है. इसके पीछे सीधा साधा वैज्ञानिक तथ्य ये है कि
दिन के समय में अधिक कोलाहल और प्रदुषण होता है जो आपकी आवाज के विपरीत दबाव डालता
है और उसे आगे बढ़ने से रोकता है. एक अन्य उदहारण के तौर पर आप रेडियो लें और दिन
के समय कहीं भीड़ भाड वाले इलाके में जाएँ. आपको उसकी तरंगे खोजने में मुश्किलें
होने लगती है जबकि रात्रि के समय
वही रेडियो स्टेशन पर भी अच्छे से काम करता है. दिन में सूरज की किरणें भी आवाज व
तरंगों को आगे बढ़ने से रोकती है.
Navratron ki Vaigyaanik Aadhyatmik Visheshta |
इसीलिए
ऋषियों ने रात्री को अधिक महत्व दिया है, मंदिर के घंटों व शंख की ध्वनी
उनका कंपन जहाँ जहाँ तक जाता है वहाँ तक के सारे वातावरण को कीटाणु रहित
कर देता है और ऐसा सिर्फ रात्रि के समय
ही संभव है. एक साधक की दृष्टि से भी देखा जाएँ तो जितना अधिक उनकी पुकार जायेगी
उतना ही जल्दी देवी माता को सुनेगी और उनकी मनोकामना पूर्ण होगी, उन्हें शुभ फल प्राप्त होंगे. इसीलिए आपको रात्री के समय
ही पुरे विधि विधान से देवी की उपासना करनी चाहियें.
एक
अन्य वैज्ञानिक तथ्य के अनुसार जब पृथ्वी सूर्य की परिक्रमा करती है तो एक साल में
पृथ्वी की चार संधियाँ होती है. इनमे से दो संधियाँ मार्च और सितम्बर में होती है
जब हम नवरात्रे मनाते है. इन्हें गोल संधियाँ भी कहते है. माना जाता है कि इस समय
वायुमंडल में रोगों के आक्रमण की संभावना सबसे अधिक होती है. वहीँ ऋतू संधियों में
तो शारीरक स्वास्थ्य बिगड़ने लगता है और तरह तरह की बीमारियाँ शरीर में प्रवेश करने
के लिए तैयार रहती है. अगर उस समय किसी को स्वस्थ रहना होता है तो उन्हें अपने तन
और मन को पवित्र और निर्मल करके नवरात्रों को रखना पड़ता है.
Raat ko hee Kyo Manaye Nav Raatri |
नवरात्रें
और शरीर के नौ द्वारों का संबंध ( Relation Between Nine
Nights and Nine Gates of Body ) :
माना
जाता है कि हर व्यक्ति के शरीर में दस द्वार होते है जिन्हें पार करने पर व्यक्ति
की आत्मा परमात्मा से मिल जाती है. इनमें से प्रथम नौ द्वारों में खुद
देवी जीवनी शक्ति वास करती है. सीधे शब्दों में कहें तो देवी दुर्गा वास
करती है. नवरात्रों में साधक या उपासक देवी की कृपा से इन नौ द्वारों को पार करता
है और दसवें द्वार तक पहुँचता है और वहाँ से ईश्वर के पास पहुंचता है. इसके लिए
पूर्ण अनुशासन, कर्तव्यनिष्ठा, स्वच्छता और तारतम्य को स्थापति को
करना होता है. इससे ये नौ द्वार और शरीर की सभी इन्द्रियां शुद्ध होती है, साथ ही शरीर के सभी तंत्र पुरे साल सुचारू रूप से कार्य करते है. इसीलिए
इसे शुद्धि का पर्व भी माना जाता है.
हर
व्यक्ति रोजाना नहा धोकर मिटटी के इस पुतले की तो सफाई कर लेता है किन्तु जब बात
आंतरिक सफाई या आत्मा की शुद्धि की हो तो उसके लिए आध्यात्म का सहारा लेना पड़ता है
और इसके लिए नवरात्रों से अधिक उचित समय कोई नहीं होता क्योकि नवरात्रों में
व्यक्ति सात्विक आहार ग्रहण करते हुए व्रत रखता है और तन मन और बुद्धि को शुद्ध
रखने की पूर्ण कोशिश करता है. इन दिनों सभी उचित और उत्तम विचारों को ग्रहण करते
है, उत्तम कर्म
करते है और एक दुसरे की मदद कर मानव धर्म का पालन करते है. लोग मंदिरों में जाकर
आध्यात्मिक शक्ति को अनुभव करते है और ईश्वर से संपर्क बनाने की कोशिश करते है.
नवरात्रों
के अन्य आध्यात्मिक और वैज्ञानिक महत्वों के बारे में अधिक जानने के लिए आप तुरंत
नीचे कमेंट करके जानकारी हासिल कर सकते हो.
Devi ke Nau Roop or Nau Aahar |
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- आदतों से मजबूर होने के परिणाम
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