माँ सिद्धिदात्री (Maa Siddhidatri)
नवरात्रि के आठ दिनों तक पूजा करने के बाद दुर्गा के नौवें और अंतिम स्वरूप की
पूजा की जाती हैं. दुर्गा माँ के नौवें स्वरूप को माँ सिद्धिदात्री के नाम
से जाना जाता हैं. माँ सिद्धिदात्री अपने भक्तों को सिद्धि प्रदान करती हैं.
क्योंकि यह माँ के नवरात्रों का अंतिम दिन होता हैं. इसलिए इस दिन इनकी विशेषतौर
पर पूजा की जाती हैं.
माँ सिद्धिदात्री का स्वरूप
माँ सिद्धिदात्री का स्वरूप बहुत ही सुन्दर हैं. माँ सिद्धिदात्री हमेशा कमल
के पुष्प पर विराजित रहती हैं. इनके मुख पर सदैव हल्की सी मुस्कान रहती हैं.
इनकी चार भुजाएं हैं. इनके एक हाथ में कमल का पुष्प हैं, दूसरे हाथ
में शंख हैं, तीसरे हाथ में गदा हैं तथा अंतिम हाथ में एक सुदर्शन
चक्र हैं. यह सुदर्शन चक्र हमें अनिष्ट कार्यों को छोड़कर सत्य कर्मों की
प्रेरणा देते हैं. CLICK HERE TO READ MORE ABOUT नवरात्रे के पहले दिन माता शैलपुत्री की पूजा ...
Nav Ratri ki Nouven Or Antim Din ki Pooja |
मानवतावादी मूल्यों को प्रदान करने वाली माँ सिद्धिदात्री
नवरात्रे के अंतिम दिन जो भक्त माँ सिद्धिदात्री की पूजा पूरे मन, कर्म तथा
वचन से करता हैं. माँ सिद्धिदात्री उनकी सभी आशाओं – आकांशाओं को पूर्ण करती हैं.
माँ सिद्धिदात्री अपने भक्तों को अनियंत्रित आकांशाओं से , बैर भावना से,
इर्ष्या से, प्रदोशदर्शन, असंतोष, आलस्य तथा किसी से प्रतिशोध लेने की
भावनाओं से मुक्ति दिलाती हैं और उन्हें सत्कर्मों में प्रवत्त करती हैं. माँ की उपासना करने से
माँ भक्तों के अन्दर एक नई शक्ति का संचार होता हैं. यह शक्ति व्यक्ति के अंदर की
वासनाओं को तथा तृष्णा को नियंत्रित करती हैं. जिससे व्यक्ति जीवन में आगे बढ़ता
हैं तथा जीवन की ऊचाइयों को छूता हैं. हिन्दू समुदाय के धार्मिक ग्रंथ देवी
पुराण के अनुसार माँ सिद्धिदात्री की उपासना करने पर ही भगवान शिव को
सभी अदभुत शक्तियाँ प्राप्त हुई थी. जिसके कारण भगवान शिव का आधा शरीर
स्त्री के शरीर के रूप में परिवर्तित हो गया था. भगवान शिवजी के शरीर में यह
परिवर्तन आने के बाद शिवजी को “ अर्धनारीश्वर ” के नाम से जाना जाने लगा और
शिवजी के इस स्वरूप को भी पूजा जाने लगा. CLICK HERE TO READ MORE ABOUT माँ दुर्गा के पावन नवरात्रे ...
Nouvan Navaratra |
माँ सिद्धिदात्री की पूजा करने करने वाले भक्तों को माँ अणिमा, लधिमा,
महिमा, ईशित्व, प्राकाम्य, सर्वकामावसायिता, दूर श्रवण, वाकसिद्ध, अमरतत्व, परकामा
प्रवेश आदि नव निधियां प्रदान करती हैं. जिन्हें पाकर व्यक्ति की लौकिक,
परलौकिक आदि सभी इच्छाएं पूर्ण हो जाती हैं तथा उनके जीवन में आने वाले सभी
कष्टों का तथा विघ्नों का नाश करती हैं.
माँ सिद्धिदात्री की पूजा (Worship of Maa Siddhidhatri)
माँ सिद्धिदात्री की पूजा नवरात्रे के सम्पूर्ण होने के कारण विशेष रूप से की
जाती हैं. इस दिन कुछ लोग अपने घरों में हवन भी करवाते हैं तथा कुछ हलवा, पूरी,
तथा चने का भंडारा करते हैं. इस दिन माँ के भक्त अपने नौ दिनों के व्रत को पूरा कर
खोलते हैं और माँ का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं. इसलिए इस दिन विशेष पूजा की जाती
हैं.
1. माँ सिद्धिदात्री की पूजा
करने के लिए माँ सिद्धिदात्री की प्रतिमा को चौकी पर आसन बिछाकर उस पर स्थापित कर
दें.
2. अब माँ सिद्धिदात्री के साथ
सभी देवियों – देवताओं को तिलक करें, पुष्प चढाएं, धूप व दीप जलाकर माँ की अराधना
करें.
3. इसके बाद सभी देवी देवताओं
के समक्ष फल व हलवा पूरी तथा चने का प्रसाद रखें. उन्हें भोग लगायें. CLICK HERE TO READ MORE ABOUT
नव रात्रि की नौवें और अंतिम दिन की पूजा |
4. अब नौ कन्याओं को भोजन के
लिए आमंत्रित करें.
5. गंगाजल से कन्याओं के चरण
धोएं, उनके माथे पर तिलक करें, हाथ में मोली का धागा बांधे.
6. इसके बाद सभी कन्याओं को एक
पंक्ति में बैठाकर उन्हें भोजन कराएँ.
7. भोजन कराने के बाद सभी को
फल तथा नारियल का प्रसाद दें और उनके चरण छूकर उनसे आशीर्वाद लें.
8. इसके बाद सभी कन्याओं को
अपनी इच्छानुसार दक्षिणा दें और माँ के जयकारे लगवाएं.
नवरात्रे के नौवें दिन की पूजा के साथ माँ के नवरात्रों के
अन्य दिनों की पूजा के बारे में अधिक जानने के लिए आप नीचे कमेंट करके जानकारी
हासिल कर सकते हैं.
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