वसंत पंचमी तथा सरस्वती
पूजन
वसंत पंचमी प्रत्येक वर्ष
माघ महीने की पंचम तिथि को मनाई जाती हैं. इस दिन को सरस्वती पूजन के नाम से भी
जाना जाता हैं तथा इस दिन विशेष रूप से ज्ञान का भण्डार सरस्वती माता की पूजा की
जाती हैं.
वसंत पंचमी के दिन का महत्व
वसंत शब्द का उच्चारण कुछ
जगहों पर बसंत के रूप में भी किया जाता हैं. जो की एक ऋतु का नाम हैं. बसंत ऋतु को
ऋतुओं का राजा माना जाता हैं. वसंत पंचमी के दिन को बसंत ऋतु के आने का
सूचक भी माना जाता हैं. क्योंकि माघ मास से ही बसंत ऋतु की शुरुआत हो जाती हैं. इस
मौसम में प्रकृति की सुन्दरता का एक अलग रूप ही नजर आता हैं. इस ऋतु में चारों तरफ
हरियाली होती हैं. खेत में सरसों की फसल लहलहाने लगती हैं, फूल के वृख पर फूलों की
बहार आ जाती हैं, आम के पेड़ पर बौर आ जाते हैं तथा तितलियाँ एक फूल से दुसरे फुल
पर मंडराने लगती हैं. CLICK HERE TO READ MORE ABOUT लोहडी खुशियों का त्यौहार ...
Vasant Panchmi |
सरस्वती माता का जन्म दिवस – ऐसा माना जाता हैं कि वसंत पंचमी के दिन ही सरस्वती माता
का जन्म हुआ था. जो की इस दिन को और भी महत्व पूर्ण बना देता हैं. इसलिए इस दिन को
सरस्वती माता के जन्म दिवस के रूप में मनाया जाता हैं. इसलिए इस दिन सभी व्यक्ति
जल्दी उठकर स्नान करने के सरस्वती माँ की अराधना करते हैं तथा उनसे ज्ञान व विद्या
प्राप्त करने के लिए प्रार्थना करते हैं.
वसंत पंचमी की कथा – ऐसा माना जाता हैं कि सृष्टी के आरम्भिक काल में भगवान
विष्णु जी की आज्ञा से ब्रह्मा जी ने पृथ्वी पर मनुष्य योनी की रचना की. लेकिन
मनुष्य योनी की रचना करने के बाद भी ब्रह्मा जी को संतुष्टि नहीं मिली. तब
उन्होंने भगवान विष्णु जी से फिर से आज्ञा लेकर अपने कमंडल से जल को पृथ्वी पर
छिड़क दिया. जल के छिडकने के बाद पूरी पृथ्वी कांपने लग गई और एक अदभुत शक्ति के
रूप में एक चतुर्भुजी सुन्दर स्त्री प्रकट हुई. इस स्त्री के एक हाथ में वीणा थी तथा
दुसरे हाथ में वर मुद्रा थी. तीसरे हाथ में पुस्तक तथा चौथे हाथ में एक माला थी.
जब इस अदभुत शक्ति ने अपने हाथ की वीणा को बजाया तो एक बहुत ही मधुर संगीत पुरे
संसार में गूंज उठा और संसार के सभी प्राणियों को वाणी प्राप्त हो गई. तब ब्रह्मा
जी ने इस देवी को वाणी की सरस्वती कहा और तभी से वसंत पंचमी के दिन सरस्वती माता
की पूजा की जाने लगी तथा इस दिन को उनके जन्म दिवस के रूप में मनाया जाने लगा. CLICK HERE TO READ MORE ABOUT महापर्व मकर संक्रांति ...
वसंत पंचमी और सरस्वती पूजन |
सरस्वती जी की मूर्ति का
विसर्जन
वसंत पंचमी के दिन कुछ
स्थानों पर सरस्वती जी की पूजा करने के लिए पंडाल सजाये जाते हैं तथा उसमें
सरस्वती जी की प्रतिमा भी स्थापित की जाति हैं. इस पंडाल में सभी व्यक्ति मिलकर
रात भर सरस्वती जी की पूजा करते हैं तथा भजन – कीर्तन करते हैं. रात भर भजन गाने
के बाद अगले दिन अर्थात माघ महीने की षष्टि तिथि को इन पंडालों में सरस्वती जी की
आरती करने के बाद उन्हें जल में विसर्जित कर दिया जाता हैं.
वसंत पंचमी के दिन सरस्वती
पूजन कैसे करे.
1.
वसंत पंचमी के दिन सुबह
जल्दी उठकर स्नान कर लें और पीले रंग के वस्त्र धारण कर लें.
2.
इसके बाद घर के मंदिर की
साफ – सफाई कर सरस्वती जी की प्रतिमा को पंचामृत से स्नान करायें और इनकी प्रतिमा
को पाट पर स्थापित कर लें.
3.
अब गणेश जी की प्रतिमा को
भी सरस्वती जी की प्रतिमा के साथ स्थापित कर लें.
4.
अब पाट के आगे एक कलश रखें,
फूल अर्पित करें, फूलों की माला चढ़ाएं, सफेद वस्त्र अर्पित करें, पीले रंग का फल
चढाएं तथा श्रृंगार की वस्तुएं चढ़ाएं.
5.
इन सभी वस्तुओं को चढ़ाने के
बाद नव ग्रह की, गणेश जी की तथा सरस्वती जी की विधि पूर्वक पूजा करे.
Sarasvati Poojan |
6.
इसके बाद सरस्वती जी की
आरती करें और उन्हें भोग के रूप में मौसमी फल या बूंदी के लड्डू भोग लगाकर अपनी
मनोकामना पूर्ण करने के लिए, ज्ञान प्राप्त करने के लिए हाथ जोड़कर प्रार्थना करें.
वसंत पंचमी के दिन खास
इस दिन सभी व्यक्ति पीले
रंग के वस्त्र धारण करते हैं तथा पीले रंग का ही भोजन का सेवन करते हैं. वसंत
पंचमी के दिन स्कूलों में भी विशेष तैयारी की जाती हैं. क्योंकि स्कूलों को विद्या
का मंदिर माना जाता हैं. इस दिन स्कूलों में छोटे बच्चों को अक्षर लिखने का अभ्यास
करवाया जाता हैं. इस दिन संगीत प्रेमी अपने वाद्य यंत्रों की पूजा करते हैं.
क्योंकि सरस्वती जी को संगीत की देवी भी माना जाता हैं. इसलिए उनके एक हाथ में सदैव
वीणा रहती हैं.
वसंत
पंचमी तथा सरस्वती पूजन के बारे में अधिक जानने के लिए आप तुरंत नीचे कमेंट करके
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