सूरदास जयंती (Surdas Jayanti)
जन्म - सूरदास हिंदी साहित्य के एक महान रचनाकार थे. इनका जन्म विक्रमी संवत
1540 में आगरा के रुनकता नामक स्थान पर हुआ था. इनकी जयंती प्रतिवर्ष मई महीने
में मनाई जाती हैं.
सूरदास के गुरु वल्लभाचार्य (Vallbhacharya The Master of Surdas )
सूरदास जन्म से ही अन्धें थे. लेकिन जन्मांध होने के बाद भी ये
अविलक्षण प्रतिभा के धनी थे. ये बचपन में ही सगुन देखने की विद्या में पारंगत हो
गये थे. सगुन देखने की विद्या के कारण ही इनकी ख्याति इनके जन्म स्थान के आस – पास
के स्थानों पर हुई थी. इन्होने 6 वर्ष की अवस्था में ही अपना घर त्याग दिया था. घर
त्यागने के बाद ये आगरा और मथुरा के बीच बने गऊघाट के किनारे रहने लगे और लोगों को
सगुन बताने लगें.
इस घाट पर ही इनकी भेंट संत वल्लभाचार्य से हुई थी तथा इन्होने ही सूरदास को पुष्टिमार्ग
में दीक्षित किया. वल्लभाचार्य से दीक्षित होने के बाद ही सूरदास ने
पुष्टिमार्ग के सिद्धांत के अनुरूप कृष्ण की उपासना की तथा उनके लिए पदों की रचना
की. CLICK HERE TO READ MORE ABOUT वल्लभाचार्य जयंती ...
Sant Mahakavi Surdas Jayanti |
सूरदास साहित्यकार के रूप में (Surdas As A Litterateur )
सूरदास की गणना मध्यकालीन सगुण भक्ति के रचनाकारों में की जाती हैं.
सूरदास ने मध्यकाल में वात्सल्य रस को आधार बनाकर कृष्ण की बाल लीलाओं का
बहुत ही मनोहारी तथा अदभुत चित्रण किया था. इन्होने कृष्ण की बाल लीलाओं का चित्रण
अपने साहित्यिक पदों में इतनी सूक्ष्मता से किया हैं कि इनके जन्मांध होने पर
विश्वास ही नहीं होता. इन्होने अपने ग्रंथों की रचना ब्रज भाषा में की हैं.
इनका हिंदी साहित्य के इतिहास में स्थान अन्य मध्यकालीन सगुण काव्य लेखकों में
अद्वितीय माना जाता हैं. इन्हें इनकी साहित्यिक रचनाओं के कारण ही महाकवि
सूरदास की उपाधि भी प्राप्त हुई थी. सूरदास अपनी रचनाओं में अधिकतर शांत रस
का प्रयोग करते थे. इन्होने राधा और कृष्ण की रासलीला का वर्णन करने के लिए अपने
पदों में श्रृंगार रस का भी बढ़ा ही मर्मस्पर्शी वर्णन किया हैं.
गीतिकाव्य के रचनाकार सूरदास (Surdas the Creator of Lyrics)
सूरदास के पिता एक संगीतकार थे. इसलिए सूरदास जी की भी बचपन से संगीत में रूचि
थी. सूरदास ने कृष्ण की नटखट लीलाओं का वर्णन गीति काव्य के रूप में ही किया था.
इन्होने भागवत गीता के दवादश स्कन्धों पर सहस्त्रावादी पदों की रचना गीतिकाव्य
में की थी. जो बाद में सागर
कहलायें थे. गीतकाव्य के कारण ही सूरदास की प्रसिद्धि दूर – दूर तक फैली हुई थी. इनके
गीतिकाव्यों की ही चर्चा सुनकर मुगल शासक इनसें मिलने के लिए तथा गितिपदों को
सुनने के लिए स्वयं इनसे भेंट करने के लिए मथुरा के घाट पर आ गए थे. CLICK HERE TO READ MORE ABOUT महर्षि दयानंद सरस्वती जयंती ...
संत महाकवि सूरदास जयंती मुबारक हो |
सुरदास के ग्रंथ (Books of Surdas) – सूरदास जी ने पांच ग्रंथों की रचना की थी. जिनका विवरण निम्नलिखित हैं –
1. सूरसागर
2. सूरसारावली
3. साहित्य – लहरी
4. नल – दमयंती
5. ब्याल्हो
इन पांच रचनाओं में से सूरदास जी की तीन रचना ही
अभी तक प्राप्त हुई हैं.
सूरदास जयंती कैसे मनाई जाती हैं (How to Celebrate
Surdas Jayanti)
सूरदास जी की जयंती पर हिंदी साहित्य प्रेमी
विभिन्न स्थानों पर संगोष्ठी करते हैं तथा इनके पदों को गाते हैं. स्कूल और
कॉलेजों में में इस दिन बच्चों को इनकी
रचनाओं के बारे में तथा इनके जीवन के बारे में बताया जाता हैं. इस दिन शिक्षक इनके
पदों को गाकर विद्यार्थियों को सुनाते भी हैं.
सूरदास जयंती के बारे में अधिक जानने
के लिए आप करने के लिए आप नीचे केमेंट करके जानकारी हासिल कर सकते हैं.
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