रामकृष्ण परमहंस जयंती (Ramakrishna Paramhans Jayanti)
रामकृष्ण परमहंस एक महान पुरुष थे. ये सभी धर्म को एक मानते थे और हमेशा धर्म
की एकता पर ही बल देते थे. इनका बचपन से ही ईश्वर में विश्वास था तथा इन्होने
ईश्वर की प्राप्ति करने के लिए जीवन भर साधना की तथा भक्ति की. इनकी मान्यता थी की
सभी धर्म एक ही हैं तथा ये सभी धर्म ईश्वर की प्राप्ति करने के लिए केवल भिन्न –
भिन्न मार्ग हैं.
रामकृष्ण परमहंस का जन्म (Ramakrishna’s Birth) – इनका जन्म सन 1836 में
पश्चिम बंगाल के हुगली जिले के कामारपुकुर गाँव में एक ब्राहमण परिवार में हुआ
था.
मानवतावादी पुरुष रामकृष्ण परमहंस (The Humanitarian Men Ramakrishna
Paramhans)
रामकृष्ण परमहंस स्वामी विवाकंद जी के गुरु थे. रामकृष्ण परमहंस मानवता के
सच्चे पुजारी थे. इनका मानना था कि “जब तक मनुष्य के हृदय में द्वेष भावना तथा
पक्षपात की भावना रहेगी तब तक मनुष्य को परमात्मा की प्राप्ति नहीं हो सकती." उनके
अनुसार “सच्चा धर्म मानव धर्म हैं” तथा जो व्यक्ति मानवीय मूल्यों की सेवा
करते हैं. वो ही सच्चे धार्मिक पुरुष बनते हैं. रामकृष्ण परमहंस के इन मानवतावादी विचारों
के कारण ही वो आज देश भर में विख्यात हैं तथा एक सिद्ध पुरुष के रूप में जाने जाते
हैं. राम कृष्ण परमहंस ने पारम्परिक रूप से शिक्षा ग्रहण नहीं की थी लेकिन फिर भी
उन्होंने सभी धर्मों का अध्ययन किया था. और यह निष्कर्ष निकाला था कि “ सभी
धर्म ग्रंथों में मूलभूत बातें एक ही हैं इसे केवल व्यक्ति ने अपने लाभ के लिए अलग
– अलग नाम दिए हैं.” CLICK HERE TO READ MORE ABOUT महात्मा, योगी, तपस्वी तैलंग स्वामी जयंती ...
Happy Ramakrishna Paramhans Jayanti |
रामकृष्ण परमहंस का आध्यात्मिक जीवन (Ramakrishna Paramhans’S
Spiritual Life)
रामकृष्ण परमहंस ने 17 वर्ष की आयु में ही पारिवारिक जीवन का त्याग कर दिया था.
अपने घर को छोड़ने के बाद रामकृष्ण परमहंस कलकत्ता के में चले गये थे. कलकत्ता में
आने के बाद इन्होनें दक्षिणेश्वर नामक मंदिर में पुजारी का कार्य किया और
तभी से माँ काली की सेवा व भक्ति में लीन हो गये. यंहा आने के बाद परमहंस जी माँ
काली की साधना में इस तरह लीन हो गये थे कि कुछ लोग उन्हें पागल समझते थे. इस
मंदिर में परमहंस जी घंटों माँ की साधना में लगे रहते तथा उनके साक्षात् दर्शन
करने के लिए तडपते रहते थे. कठोर तपस्या के बाद उन्हें माँ काली के दर्शन हुए.
लेकिन आध्यात्मिकता के चरम उत्कर्ष पर पहुंचने के लिए इनके लिए सिर्फ यही काफी
नहीं था. माँ काली के दर्शन करने के बाद इन्होनें सभी धार्मिक ग्रंथों का अध्ययन
किया और आध्यात्मिकता के चरम उत्कर्ष पर पहुंचकर धार्मिक विश्वासों को प्रेम एवं
सहानुभूति से देखने में सक्षम हुए.
आध्यात्मिकता को पूर्ण रूप से प्राप्त करने के बाद कलकत्ता का दक्षिणेश्वर मंदिर ही इनका प्रसिद्ध स्थान बन गया जहाँ पर विभिन्न पुरुष एवं तांत्रिक इनसे आध्यात्मिक प्रेरणा प्राप्त करने के लिए आते थे. इनसे आध्यात्मिक शिक्षा प्राप्त के लिए ईश्वरचंद्र विद्यासागर, स्वामी विवेकानंद , बंकिमचंद्र चटर्जी तथा अश्विनी कुमार दत्त जैसे महान पुरुष भी इसी स्थान पर आते थे.
आध्यात्मिकता को पूर्ण रूप से प्राप्त करने के बाद कलकत्ता का दक्षिणेश्वर मंदिर ही इनका प्रसिद्ध स्थान बन गया जहाँ पर विभिन्न पुरुष एवं तांत्रिक इनसे आध्यात्मिक प्रेरणा प्राप्त करने के लिए आते थे. इनसे आध्यात्मिक शिक्षा प्राप्त के लिए ईश्वरचंद्र विद्यासागर, स्वामी विवेकानंद , बंकिमचंद्र चटर्जी तथा अश्विनी कुमार दत्त जैसे महान पुरुष भी इसी स्थान पर आते थे.
रामकृष्ण परमहंस जयंती की शुभकामनाएं |
रामकृष्ण परमहंस के अनमोल वचन (Ramakrishna Praramhans ‘s Precious
Words)
1. ईश्वर की प्राप्ति करने के
लिए उनका कहना था कि “ जिस प्रकार मैले दर्पण में सूरज का प्रतिबिम्ब नहीं पड
सकता ठीक उसी प्रकार मलिन अंत: करण में भी ईश्वर के प्रकाश का प्रतिबिम्ब नहीं पड
सकता. ” इसलिए जो भी मनुष्य ईश्वर को प्राप्त करना चाहता हैं. उसे पहले अपने
हृदय को साफ करना चाहिए अर्थात उसे अपने मन में किसी प्रकार की द्वेष भावना नहीं
रखनी चाहिए.
2. एक सच्चा संत या साधक बनने
के लिए उनका कहना था कि “नाव जल में रहे लेकिन जल नाव में नहीं रहना चाहिए. इसी
प्रकार साधक जग में रहे, लेकिन साधक के मन में जग नहीं रहना चाहिए.” अर्थात जो
व्यक्ति साधक बनना चाहता हैं. उसे सांसारिक मोह – माया से दूर रहना चाहिए तथा केवल
ईश्वर का स्मरण करना चाहिए और केवल जग की भलाई के बारे में सोचना चाहिए.
रामकृष्ण परमहंस जयंती के बारे में अधिक जानने के
लिए आप तुरंत नीचे कमेंट करके जानकारी हासिल कर सकते है.
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