मुहर्रम (Muharram)
जिस प्रकार वर्ष में आने वाले विभिन्न महीनों को किसी न किसी नाम से जाना जाता
हैं. ठीक उसी प्रकार
मुहर्रम भी एक महीने का नाम हैं. हिजरी कैलेण्डर के अनुसार मुहर्रम
इस्लाम समुदाय के लोगों का पहला महिना होता है तथा इस महीने के पहले दिन
से ही इस्लाम समुदाय के लोगों के लिए नव वर्ष की शुरुआत होती हैं. मुहर्रम
को शहादत तथा शोक का महिना माना जाता हैं. क्योंकि इसी महीने में पैगम्बर मुहम्मद
के नाती इमाम हुसैन तथा उनके साथियों की मृत्यु कर्बला के युद्ध में हुई
थी.
कर्बला का युद्ध (Karbla War)
इस्लामिक कैलेण्डर के अनुसार 61 हिजरी के समय कर्बला में याजिद
नाम का एक खलीफा था. जो इस्लामिक समुदाय के सिद्धांतों का बिल्कुल पालन नहीं करता
था तथा स्वयं को सर्वश्रेष्ठ मानता था. याजिद बहुत ही अत्याचारी भी था. वह कर्बला
की आवाम को हमेशा परेशान करता रहता था. वह चाहता था कि उसे सभी इस्लाम का खलीफा
मान लें और उसके हुक्म का पालन करें. CLICK HERE TO READ MORE ABOUT अल हिजरा इस्लाम का नव वर्ष ...
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स्वंम को खलीफा साबित करने के लिए ही उसने पैगम्बर मुहम्मद के नाती को पैगाम
भेजा और उन्हें कर्बला आकर उनको खलीफा की उपाधि प्रदान करने के लिए तथा इस्लामिक
सिद्धांतों को ख़त्म करने के लिए बुलाया. लेकिन इमाम हुसैन ने उसकी बात न मानी और
उनके सन्देश वाहकों को वापिस भेज दिया. इसके बाद मदीना में सुख – शांति बनाये रखने
एक लिए इमाम हुसैन ने मदीना छोड़ने का फैसला लिया और मदीना से मक्का की ओर निकल
गये. लेकिन इस यात्रा के बीच में ही याजिद के सैनिकों ने इमाम हुसैन के काफिले को
रास्ते में ही घेर लिया और उन्हें बंदी बना लिया. बंदी बनाने के बाद इमाम हुसैन के
परिवार और उनके साथियों को तीन दिनों तक भोजन पानी कुछ भी नसीब न होने दिया. इतना
अत्याचार करने के बाद भी जब इमाम हुसैन ने याजिद की सेना के आगे अपना सिर न झुकाया
तो उन्होंने इमाम के सैनिकों पर हमला बोल दिया और उनके सभी साथियों की तथा उनके
छोटे से बेटे अली अजगर की हत्या कर दी. इसके बाद भी जब हुसैन ने याजिद की
बात नहीं मानी तो उन्होंने इमाम हुसैन का सिर काट दिया. जिस दिन इमाम हुसैन की
मृत्यु हुई थी. वह मुहर्रम महिने का दसवा दिन था. जिसे असुरा के नाम से जाना
जाता हैं. CLICK HERE TO READ MORE ABOUT जमात - उल – विदा ...
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ताजिया (Tajiya)
मुहर्रम के 11 वें दिन मुस्लिम समुदाय के लोग ताजिया निकलते हैं. ताजिया
बांस रंगीन कागज तथा पन्नियों का प्रयोग करके बनाया जाता हैं. इसमें इमाम
हुसैन की एक कब्र बनाकर उसमें इमाम हुसैन को दफनाया जाता हैं. दस दिनों
तक शोक मनाने के बाद इमाम की कुर्बानी की याद में नाचते – गाते कर्बला के युद्ध की
गाथा गाते हुए मुस्लिम समुदाय के लोग ताजिया निकालते हैं.
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मुहर्रम कैसे मनाते हैं (How to Celebrate Muharram)
मुहर्रम एक महीने का नाम हैं तथा इस महीने को इमाम की शहादत की याद में मातम
के महीने के रूप में मनाया जाता हैं. इस महीने के पहले दस दिन विशेष होते हैं. इस
महीने के पहले दस दिन मुस्लिम समुदाय के लोग रोजे रखते हैं. इन दस दिनों के रोजों
को रमजान के महीने से भी पवित्र माना जाता हैं. ऐसा माना जाता हैं कि दस दिनों तक
रोजे रखने से इंसान के द्वारा किये गये बुरे कर्म नष्ट हो जाते हैं तथा मुस्लिम
समुदाय के लोगों को इमाम हुसैन तथा पैगम्बर मुहम्मद का आशीर्वाद प्राप्त होता हैं,
अल्लाह की रहमत उन पर हमेशा बनी रहती हैं तथा उनके द्वारा किये गये सभी गुनाह माफ़
हो जाते हैं.
मुहर्रम के महीने में असुरा के दिन तक मुस्लिम समुदाय इमाम की मृत्यु का शौक
मनाते हैं, इन दस दिनों तक लोग मस्जिद में जाकर अपने पवित्र ग्रंथ कुरान को पढ़ते
हैं तथा दस दिनों तक कर्बला के युद्ध और इमाम हुसैन की कुर्बानी की कहानी को सुनते
हैं.
मुहर्रम इमाम हुसैन की शहादत |
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