महर्षि वाल्मीकि जयंती (Maharishi Valimiki Jayanti)
प्राचीन वैदिक काल के महान ऋषियों में महर्षि वाल्मीकि का प्रमुख स्थान हैं.
महर्षि वाल्मीकि ही वो महापुरुष और विद्वान् हैं. जिन्होंने हमारे धार्मिक
ग्रंथ रामायण की रचना की थी. महर्षि वाल्मीकि का जन्म महर्षि कश्यप तथा
अदिति के नौवें पुत्र वरुण से हुआ था. CLICK HERE TO READ MORE ABOUT माधवाचार्य जयंती ...
Happy Maharishi Valimiki Jayanti |
वाल्मीकि जी का जीवन (Life of Valmiki)
महर्षि वाल्मीकि का नाम रत्नाकर था. इनका जन्म तो एक ब्राह्मण परिवार
में हुआ था लेकिन बुरी संगत में रहने के कारण इन्होने अपना अधिकांश जीवन डाकू के
रूप में बिताया. डाकू बनने के बाद इन्होने अपना अधिक जीवन लूट – पाट करने में तथा
हत्याएं करने में व्यतीत किया. मह्रिषी अक्सर रास्ते में आने - जाने वाले
मुसाफिरों को लूट लेते थे. एक दिन उन्हें रास्ते में नारद जी मिले और
वाल्मीकि जी ने उनसे कहा कि आप के पास जो भी सामान या धन हैं. उसे मुझे दे दो.
इसके बाद नारद जी ने कहा कि मेरे पास केवल वीणा हैं. जिन्हें तुम चाहो तो ले सकते
हो. इस पर वाल्मीकि जी ने नारद मुनि को मारने का प्रयत्न किया. तभी नारद जी ने
वाल्मीकि जी से एक प्रसन्न पूछा कि तुम ये सब दुष्कर्म क्यों करते हो. इसका जवाब
देते हुए वाल्मीकि जी ने कहा कि अपने परिवार की आजीविका चलाने के लिए. इसके बाद
नारद जी ने फिर से एक प्रश्न किया कि “जिनके लिए तुम ये सब कार्य करते हो क्या वो इन
दुष्कर्मों के पापों के भागीदार बनेंगे.” इस सवाल का जवाब जानने के लिए वाल्मीकि
जी अपने घर गये और अपने परिवार से यह सवाल पूछा तो उनके परिवार के किसी भी सदस्य
ने उनके पाप का भागीदार बनने के लिए हाँ नहीं की. यह देखकर वाल्मीकि जी वापिस नारद
मुनि के पास गये और उनके चरणों को पकड़ लिया. इस दिन के बाद से ही वाल्मीकि जी ने
तपस्या करनी शुरू कर दी. CLICK HERE TO READ MORE ABOUT महर्षि दयानंद सरस्वती ...
महर्षि वाल्मीकि जयंती मुबारक हो |
ऐसा माना जाता हैं कि उस दिन के बाद से वाल्मीकि जी ईश्वर की तपस्या में इतने
लीन हो गये थे कि उनके शरीर पर बहुत सारे दिमक आ गये और इन दीमकों ने उनके शरीर को
अपना घर बना लिया. जब वाल्मीकि जी ने अपनी तपस्या पूर्ण कर ली. तब उन्होंने अपना
स्थान छोड़ा और उस दिन के बाद से ही रत्नाकर नाम के डाकू को वाल्मीकि के नाम से
सम्बोधित किया जाने लगा.
रामायण के रचयिता महर्षि वाल्मीकि (The Author of Ramayan Maharishi Valmiki)
धार्मिक ग्रंथों के अनुसार वाल्मीकि जी तमसा नदी के तट पर गये थे. जहाँ पर
उन्होंने दो क्रोंच पक्षी के जोड़े की चह्चहाने की मधुर आवाज सुनी. जिसे सुन
कर महर्षि वाल्मीकि जी का मन प्रसन्न हो गया. कुछ समय बाद व्याध नामक एक
पुरुष ने इन दोनों पक्षियों को अपने तीर से मार डाला. क्रोंच पक्षी के जोड़े में से
के पक्षी को मरा देख महर्षि वाल्मीकि जी बहुत ही दुखी हो गये और उनके मुख से व्याध
के लिए शाप के रूप में एक श्लोक निकल पडा. जब वाल्मीकि जी वापिस अपने आश्रम
में पहुंचे तो उन्होंने लगातार इस श्लोक पर मनन किया तथा इसके बाद ही नारद ऋषि के
द्वारा सुनी हुई रामायण की कथा को आधार बनाकर एक महाकाव्य की रचना कर दी. जिसे
रामायण के नाम से जाना जाने लगा और उसके बाद वाल्मीकि जी महर्षि वाल्मीकि के नाम
से प्रख्यात हो गये. महर्षि जी को संस्कृत भाषा का भली भांति ज्ञान था. इसलिए
उन्होंने सम्पूर्ण रामायण की रचना संस्कृत भाषा में ही की थी.
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वाल्मीकि जयंती कैसे मनाई जाती हैं (How to Celebrate Valmiki Jyanti)
वाल्मीकि जी की जयंती के दिन प्रत्येक वर्ष कुछ धार्मिक कार्यक्रमों का आयोजन
किया जाता हैं. जिनमे लोगों को प्रेरित करने के लिए तथा बुरे कर्मों से दूर रहकर
सत्य के मार्ग पर चलने के लिए वाल्मीकि जी के जीवन परिवर्तन की कथा सुनाई जाती है.
वाल्मीकि जी की प्रतिमा स्थापित कर झाँकी निकाली जाती हैं. जिसमें मिठाई, फल आदि
का भोग वितरित किया जाता हैं. कुछ स्थानों पर इस दिन भंडारा भी किया जाता हैं.
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