महर्षि दयानंद सरस्वती जयंती
(Maharishi Dayanand Saraswati
Jayanti)
भारत के अनेक महापुरुषों
में से एक महर्षि द्यानंद सरस्वती जी हैं. ये एक ऐसे व्यक्ति हैं. जिन्होंने अपने
ज्ञान, अनुभव और विवेक का प्रयोग कर सम्पूर्ण देश का मार्गदर्शन किया हैं.
जन्म – महर्षि दयानंद सरस्वती का जन्म 19 वी शताब्दी में सन 1824
फरवरी माह की 12 तारीख को गुजरात के काठियावाड जिले के टंकारा नामक गाँव में हुआ
था.
महर्षि दयानंद सरस्वती का
बचपन (Maharishi Dayanand
Saraswati ‘s Childhood)
महर्षि दयानंद सरस्वती का
मूल नाम मूलशंकर था. दयानंद सरस्वती जी बचपन से ही प्रतिभावान थे. इनके
बचपन के बारे में कहा जाता हैं कि 2 वर्ष की आयु में ही इन्होने पूरे गायत्री
मन्त्र का शुद्ध उच्चारण करना शुरू कर दिया था. इनके घर में शिवजी की मुख्य रूप से
उपासना की जाती थी. इसलिए ये भी शिवजी के भक्त थे तथा उनकी पूरी श्रद्धा से अराधना
तथा भक्ति करते थे.
इन्होने अपनी प्राम्भिक
शिक्षा घर पर ही अपने पिताजी से प्राप्त की थी. इनके पिता जी ने इन्हें
धर्मशास्त्र की शिक्षा दी थी. इसलिए इन्हें धर्म ग्रंथों का पूरा ज्ञान था. दयानंद
सरस्वती जी का दिमाग बहुत ही तेज था. इन्होने केवल 14 वर्ष की आयु में ही संस्कृत
व्याकरण का, सामवेद तथा यजुर्वेद का सम्पूर्ण अध्ययन कर लिया था. CLICK HERE TO READ MORE ABOUT तैलंग स्वामी जयंती ...
Happy Maharishi Dayanand Saraswati Jayanti |
हिंदी के प्रचारक तथा रचनाकार
महर्षि दयानंद सरस्वती (The
Author And Publicist Of Hindi Maharishi Dayanand Sarasvati)
दयानंद सरस्वती जी अहिन्दी
भाषी थे. लेकिन फिर भी इन्होने कुछ प्रसिद्ध हिंदी ग्रंथ की रचना की तथा संस्कृत
के कुछ ग्रंथों का हिन्दी में अनुवाद भी किया. दयानंद सरस्वती को हिंदी भाषा बहुत
ही पसंद थी तथा ये हिंदी भाषा को पूरे भारत देश की भाषा के रूप में देखना चाहते
थे. इसके लिए उन्होंने कहा था कि “ मेरी आँखे तो उस दिन को देखने के लिए
तरस रहीं हैं, जब कश्मीर से कन्याकुमारी तक सब भारतीय एक भाषा को बोलने और समझने
लग जायेंगे.”
महर्षि दयानंद जी की सबसे
प्रसिद्ध रचना “ सत्यार्थ प्रकाश ” हैं. जिसे दयानंद जी ने मूल रूप से
हिंदी भाषा में लिखा हैं. इसके अलावा भी महर्षि दयानंद सरस्वती जी ने कुछ अन्य
ग्रंथों की रचना की हैं. जिनकी जानकारी निम्नलिखित दी गई हैं –
1.
पाखण्ड खंडन – इस ग्रंथ की रचना दयानंद जी ने सन 1866 में की थी.
2.
वेद भाष्य भूमिका – इसका ग्रंथ का रचनाकाल 1876 हैं.
3.
ऋग्वेद भाष्य - इस ग्रंथ की
रचना इन्होने सन 1877 में की थी.
4.
पंचमहायज्ञ – दयानंद जी की इस रचना का समय सन 1875 माना जाता हैं. CLICK HERE TO READ MORE ABOUT गुरु नानक जयंती ...
महर्षि दयानंद सरस्वती जयंती की मुबारक हो |
5.
वल्लभाचार्य मत का खंडन – महर्षि जी ने इस ग्रंथ की रचना पंचमहायज्ञ ग्रंथ के साथ
ही की थी. इस लिए इसका भी रचनाकाल 1875 माना जाता हैं.
आर्य समाज के स्थापक महर्षि
दयानंद सरस्वती (Maharishi
Dayanand Sarasvati The Foundr of Arya Samaj)
महर्षि दयानंद जी का घर का
वातावरण पूर्ण रूप से धार्मिक था तथा उनकी शिक्षा का आरम्भ भी धार्मिक ग्रंथो को
तथा वेदों को पढ़कर हुआ था. इसलिए दयानंद जी को वेदों से और धार्मिक ग्रंथों से
बहुत ही प्रेम था तथा इसलिए वो इन ग्रंथों और वेदों का पूरे भारत में घूम – घूम कर
प्रचार करते थे, सभी को इनका महत्व बताते थे. अपने तथा अपने शिष्यों को इन ग्रंथों
से सम्बन्धित उपदेश भी देते थे.
वेदों का प्रचार करने के
लिए तथा इसके महत्व को व्यापक रूप से प्रसारित करने के लिए ही 7 अप्रैल, सन
1875 में इन्होनें “आर्य समाज” की स्थापना की थी तथा इस संस्था से
लोगों को जोड़ना शुरू कर दिया था. आर्य समाज की स्थापना करने के कुछ ही समय बाद इस
संस्था की अन्य शाखाओं की स्थापना देश के अलग – अलग राज्यों में होने लगी.
आर्य समाज के कार्य (Work Of Arya Samaj)
इस संस्था का कार्य देश में
वेदों का प्रचार करने के अलावा देश की संस्कृति का भी प्रचार करना था. देश की
संस्कृति का का प्रचार करने में आर्य समाज ने बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका भी निभाई.
इस संस्था का कार्य समाज में फैली कुरीतियों का विरोध करना और उन्हें समाप्त करना
भी था. इस संस्था ने बाल विवाह का भी विरोध किया तथा विधवा विवाह और नारी शिक्षा
का समर्थन किया और उसे प्रोत्साहन दिया.
Maharishi Dayanand Saraswati |
समाज कल्याणकारी के रूप में
महर्षि दयानंद सरस्वती (Maharishi
Dayanand Saraswati As A Welfare Society)
महर्षि जी वेदों के प्रचार
के अलावा समाज कल्याण का कार्य भी करते थे. जिस समय महर्षि जी का जन्म हुआ अर्थात
19 वीं शताब्दी में समाज में बहुत ही कुरीतियां, कुप्रथा, पाखण्ड, ढोंग,
अंधविश्वास, छुआछुत आदि फैला हुआ था. समाज में फैलें इन अन्धविश्वास के महर्षि जी
विरोधी थे. जिसके लिए इन्होने आर्य समाज की स्थापना की तथा समाज कल्याण के लिए कई
महत्वपूर्ण कार्य किए. जिनकी जानकारी नीचे दी गई हैं –
1.
महर्षि दयानंद सरस्वती ने
समाज में फैले ढोंग, पाखंड तथा अन्धविश्वास का विरोध किया तथा इन्हें समाप्त करने
के लिए शांति पूर्ण तरीके से क्रांति भी की.
2.
समाज को बेहतर बनाने के लिए
स्त्री शिक्षा का प्रचार किया तथा बाल विवाह पर रोक लगाई.
3.
इन्होने सती प्रथा का विरोध
किया तथा विधवा विवाह को प्रोत्साहन दिया.
4.
समाज के उत्थान के लिए
चरित्र निर्माण पर जोर दिया तथा सत्य की राह पर चलकर देश सेवा के लिए आगे बढने के
लिए लोगों को प्रेरित भी किया.
5.
इन्होने शैवमत तथा वेदांत
का परित्याग किया तथा संख्योग को अपनाया और संख्योग के दर्शन के सहारे वेदों का
प्रचार किया.
महर्षि दयानंद
सरस्वती जी के बारे में अधिक जानने के लिए आप तुरंत नीचे कमेंट करके जानकारी हासिल कर
सकते है.
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