धनतेरस :
कथाओं के अनुसार धनतेरस के त्यौहार को कार्तिक माह की कृष्ण त्रियोदशी के दिन मनाया
जाता है. इस दिन समुद्र मंथन से आयुर्वेद के जनक भगवान श्री धन्वंतरी जी अमृत कलश लेकर
प्रकट हुए थे. उन्होंने इसी दिन सभी देवताओं
को अमृत पान देकर अमर बनाया था. इसीलिए आज भी स्वास्थ्य और आयु की कामना के लिए धनतेरस
के दिन भगवान धन्वंतरी की पूजा की जाती है. इस दिन वैदिक देवता यमराज जी का भी पूजन
किया जाता है. कुछ श्रद्धालु ऐसे भी है जो सारा दिन उपवास रखते है और शाम को यमराज
जी की कथा को सुनते है.
धनतेरस का महत्त्व
:
·
धार्मिक और ऐतिहासिक दृष्टी से ये दिन बहुत महत्वपूर्ण है. शास्त्रों में लिखा है
कि धनतेरस के दिन जिस परिवार में यमराज के निमित दीप दान किये जाते है, उस घर में कभी भी अकाल मृत्यु नही होती.
·
इस दिन घरो में साफ़ और स्वच्छ दीपक जलाये जाते है और लक्ष्मी जी का आवाहन किया जाता है.
·
इस दिन व्यक्ति अपने घर के पुराने बर्तनों को बदलकर नए बर्तनों को
खरीदकर अपने घर में लाता है. अगर आप चाँदी के बर्तनों को
खरीदते हो तो आपको आध्यात्मिक पुण्य मिलता है. साथ ही आप ध्यान रखे कि इस
दिन कोई भी आपको उधार सामान नही देता है.
·
इस दिन व्यक्ति को
कार्तिक स्नानकर के
प्रदोष काल में घाट, गौशाला, कुआं, बावली और मंदिर आदि पवित्र स्थान पर
दीपक को जलाना चाहियें.
·
पुरे साल में सिर्फ इसी दिन मृत्यु के देवता यमराज की पूजा होती है. CLICK HERE TO READ MORE SIMILAR POSTS ...
Dhanteras ka Mahattav or Poojan Vidhi |
धनतेरस पूजन विधि :
§ इस दिन पूजा दिन में नही बल्कि रात के समय की
जाती है और इसके लिए घर में यमराज के लिए एक
दीपक को जलाया जाता है.
§ दीपक आटे का बना होना चाहियें और उसे घर के मुख्य दरवाजे पर रख
दें. इस दीपक को जमदीवा या
फिर यमराज का दीपक भी
कहा जाता है.
§ रात को
स्त्रियों को इस दीपक में तेल डालकर, नई रुई की 4 बात्ती से दीपक को जलाना चाहियें, साथ ही
आप इस बात का ध्यान रखे कि दीपक को आप दक्षिण दिशा में ही
रखे.
§ पूजन में आप जल, रोली, फुल, चावल,
गुड और नैवेध आदि का
इस्तेमाल करें और
यम की स्तुति करें. क्योकि यमराज मृत्यु के देवता है तो आप
उन्हें श्रद्धा भाव से नमन करते हुए विनती करें कि आपके घर
में कभी भी किसी की
अकाल मृत्यु न हो.
धनतेरस कथा :
एक बार भगवान विष्णु जी मृत्युलोक का भ्रमण करने के बारे में विचार कर रहे थे तो माता लक्ष्मी जी ने
उनसे कहा कि वो भी
उनके साथ चलना चाहती है. इस पर भगवान विष्णु ने कहा कि
अगर तुम मेरी हर बात को मानो तो
मै तुम्हे अपने साथ लेकर चलूँगा. माता लक्ष्मी ने
उनकी इस शर्त को स्वीकार कर लिया और
दोनों भूमंडल पर आ गये. कुछ देर के बाद भगवान विष्णु ने
माता लक्ष्मी से कहा कि “ जब तक मै न
आऊ तब तक तुम यहीं ठहरो | मै दक्षिण दिशा की तरफ जा
रहा हूँ तुम उस तरफ देखना भी मत “. विष्णु जी के जाने के बाद लक्ष्मी जी के मन
में अजीब सा महसूस हुआ कि आखिर दक्षिण दिशा में ऐसा क्या है जो
मुझे वहां देखने के लिए भी मना कर
दिया गया. इस रहस्य को जानने के लिए माता लक्ष्मी जी भी भगवान के
पीछे पीछे चल पड़ी. CLICK HERE TO READ MORE SIMILAR POSTS ...
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रास्ते में उन्हें सरसों का एक खेत दिखाई दिया,
उसमे लगे फूलो से मुग्ध होकर लक्ष्मी जी ने कुछ फूल तोड़े और अपना श्रृंगार किया. आगे
उन्हें गन्ने के खेत दिखाई दिए, लक्ष्मी जी ने 4 गन्ने तोड़े और उन्हें चूसने लगी.
इसी क्षण विष्णु जी भी वहां आ गये और उन्हें वहां देखकर गुस्सा हो गये और उन्हें श्राप
दे दिया कि “ मैंने तुम्हे इधर आने के लिए मना किया था, पर तुम न मानी और किसान की
चोरी का अपराध कर बैठी. अब तुम 12 साल तक इस किसान के पास सजा के रूप में सेवा करोगी
“, ऐसा कहकर विष्णु जी क्षीरसागर लौट आये और लक्ष्मी जी किसान के घर में रहने लगी.
वो किसान बहुत ही गरीब था. लक्ष्मी जी ने उसकी पत्नी
को कहा कि “ तुम स्नान करके देवी लक्ष्मी जी की पूजा करो, फिर रसोई बनाना, तूम जो मांगोगी
वो तुम्हे अवश्य मिलेगा “. किसान की पत्नी ने ऐसा ही किया. पूजा के प्रभाव से और लक्ष्मी
जी की कृपा से किसान का घर धीरे धीरे अन्न, धन, रत्न और स्वर्ण आदि से भरने लगा.
इस तरह लक्ष्मी जी ने किसान को धन धान्य से परिपूर्ण कर दिया. लक्ष्मी जी के 12
साल आनंद के साथ कट गये और वो क्षीरसागर जाने के लिए तैयार हो गई. जब विष्णु जी लक्ष्मी
जी को लेने के लिए आये तो किसान ने उन्हें भेजने से इंकार कर दिया. लक्ष्मी जी भी बिना
किसान की मर्जी के वहां से नही जाना चाहती थी. इस पर विष्णु जी ने एक चतुराई का सहारा
लिया.
विष्णु जी जिस दिन लक्ष्मी जी को लेने आये थे उस दिन
वारुणी पर्व था, तो विष्णु जी ने किसान को वारुणी पर्व का महत्त्व समझाते हुए कहा कि
“ तुम परिवार के सहित जाकर गंगा में स्नान करो और इन कौड़ियों को भी जल में छोड़ देना.
जब तक तुम नही लौटोगे, तब तक मै लक्ष्मी को लेकर नही जाऊँगा ”. लक्ष्मी जी ने किसान
को 4 कौड़ियाँ दी ताकि किसान उन्हें गंगा में बहा दें, किसान ने भी वैसा ही किया. जैसे
ही उसने गंगा में 4 कौड़ियाँ डाली, नदी में से 4 हाथ निकले और कौड़ियों को लेकर चले गये.
तब किसान को इस बात का आभास हुआ कि उनके घर में जो स्त्री है वो कोई देवी है.
किसान ने गंगा माता से पूछा कि हे माता, ये चार भुजाएं किसकी है? तब गंगा जी ने कहा
कि “ हे किसान ! ये चारो भुजाएं मेरी ही है. तूने जो कौड़ियाँ डाली है वो तुझे किसने
भेंट की थी “. इस पर किसान ने कहा कि “ मेरे घर में एक स्त्री आई हुई है, उन्होंने
ही मुझे ये कौड़ियाँ दी थी ”.
इस पर गंगा जी ने कहा कि तुम्हारे घर में जो स्त्री
आई हुई है वो स्वयं देवी लक्ष्मी जी है और वो पुरुष भगवान विष्णु जी है. तुम लक्ष्मी
को जाने मत देना वर्ना तुम फिर से निर्धन हो जाओगे. इस बात को सुनकर किसान वापस अपने
घर आ गया और वहां जाकर माता लक्ष्मी जी का आँचल पकड़ लिया और कहने लगा कि मै आपको कहीं
जाने नही दूंगा. इस पर भगवान विष्णु जी ने कहा कि इन्हें कौन जाने देना चाहता है किन्तु
ये चंचलता है, कहीं ठहरती ही नही, बड़े से बड़े इन्हें नही रोक पायें. इनको तो मैंने
श्राप दे रखा था कि ये 12 वर्ष तक तुम्हारी सेवा करे. अब इनके 12 वर्ष हो चुके है तो
तुम्हारी सेवा का समय अब पूरा हो चूका है.
किसान हठपूर्वक बोला कि “ नही मै अब इन्हें कहीं नही
जाने दूंगा “, तुम कोई दूसरी स्त्री यहाँ से ले जाओ. इस पर लक्ष्मी जी बोली कि हे किसान
तुम मुझे रोकना चाहते हो न तो तुम वैसा ही करो जैसा मै कहती हूँ. उन्होंने कहा कि कल
तेरस है, तो तुम अपने घर को लीप पोत कर स्वच्छ रखना, रात्री में घी के दीपक जलाना और
शाम को मेरी पूजा करना. साथ ही तुम ताम्बे के एक कलश में रुपया भर कर मेरे निमित के
रूप में रखना. मै उस कलश में निवास करने लगूंगी. किन्तु ध्यान रखना कि पूजा के समय
मै तुम्हे दिखाई नही दूंगी. इस तरह मै तुम्हारे घर में वर्ष भर के लिए रहूंगी और अगर
तुम चाहते हो कि मै हमेशा तुम्हारे साथ रहूँ तो तुम प्रतिवर्ष इसी तरह से पूजा करना.
इतना कहकर माता लक्ष्मी दीपकों के प्रकाश की तरह
दशो दिशाओं में फ़ैल गई और भगवान विष्णु देखते रह गये. अगले दिन धनतेरस पर किसान ने
माता के बताये अनुसार उनकी पूजा की और उसका घर धन धान्य से परिपूर्ण रहा. इस तरह से
हर वर्ष धनतेरस के दिन माता लक्ष्मी जी की पूजा का प्रचालन शुरू हुआ.
धन तेरस का महत्तव और पूजन विधि |
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