योग क्या है ? – मनुष्य के लिए सबसे
पहले उसके शरीर का स्वस्थ होना बहुत जरुरी होता है और मनुष्य अपने शरीर को स्वस्थ
रखने के लिए बहुत से कार्य करता है परन्तु शरीर को स्वस्थ बनाए रखने के लिए एक
बहुत ही महत्वपूर्ण साधना है जिसे हम योग के नाम से जानते है. योग हमे हमारे शरीर
को स्वस्थ बने रखने में मदद करता है. एक रोगी मनुष्य को योग करने में काफी तकलीफे
होती है. लकिन अगर रोगी मनुष्य
योग को करने में सक्षम है तो वह बहुत ही जल्द अपने रोगों से मुक्ति हासिल कर सकता
है योग के ये आठ अंग एक रोगी मनुष्य के पूरे शरीर, उसके प्राणों, उसके कोशो, तथा
चक्रों पर अपना कार्य करके मनुष्य के शरीर को स्वस्थ बनाने में सहयोग करते है इसी कारण
से योग के आठ अंग अपना कार्य करने में परषिद है योग को बनाने वाले आचार्यो ने सबसे
पहेले योग में यम का वर्णन किया है.
1.
यम – हमारे समाज के कुछ
नियम होते है जीन नियमो का पालन करके हम अपना व्यवहार बनाते है इसी व्यवहार को बने
रखने वालो को नियमो को हम यम कहते है. इन नियमो के अनुसार हमे समाज में कभी भी
किसी के साथ बुरा व्यवहार नहीं करना चाहिए. न ही किसी को सताना चाहिए और ना ही कभी
किसी प्रकार का लोभ लालच करना चाहिए. ऐसा कोई भी कार्य नहीं करना चाहिए जिससे
हमारी वजह से किसी को भी तकलीफ हो.
आचार्यो
के वर्णन से ये पता चलता है के यम भी पांच प्रकार के होते है. जिनका वर्णन जैन
धर्म में भी किया गया है जैन धर्म में इन पांचो को “ पंच महाव्रत ” भी कहा गया है. और पतंजली
के पांच प्रकार के यम निन्मलिखित है :-
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Eight Limbs of Yoga |
अहिंसा – अहिंसा का मतलब मनुष्य के वचन और कर्म पर बने रहने को ही अहिंसा
कहा गया है प्राचीन काल से ही अहिंसा का इस्तमाल होने लगा था अहिंसा पर बने रहे तो
हमे सरे सुखो की पूर्ति होती है
सत्य
– सत्य एक ऐसा शब्द है जिसे हमारी आत्मा को शान्ति मिलती है मनुष्य को हमेशा ही
सत्य का पाठ पढाया जाता है क्योंकि सत्य ही इंसान को आगे बढने की शक्ति देता है
हमे असत्य का त्याग करके सत्य के साथ आगे बढ़ना चाहिए क्योंकि सत्य हमारे आत्मा को
शुद्ध और पवित्र बनता है
अस्तेय – जब कोई मनुष्य किसी ओर के धन पर अपनी नज़र रखता है तो इससे अस्तेय
कहेते है यदि मनुष्य चोरी, रिश्वत, भीख, तथा दलाली लेता या देता है ऐसा करने को ही
अस्तेय कहते है
अपरिग्रह – जो धन आप के हिस्से का है और आप इससे इम्मंदारी से प्राप्त करते
है तो हम इसे अपरिग्रह कहते है जरुरत मंद चीजो को अपने पास रखने बनाए रखना भी
अपरिग्रह कहलाता है
यानि मनुष्य सिर्फ उतना ही प्रयोग में ले जितने
की उसे आवशकता है और जरुरत से ज्यादा चीजो को अपने पास रखना या इक्कठा करना
परिग्रह कहलाता है.
ब्रहमचर्य – ब्रह्मचार्य एक ऐसा शब्द है जो हर नर मनुष्य के जीवन का हिस्स
बन सकता है ब्रह्मचार्य में मनुष्यों को अपने मन, कर्म , वचन व विषय को ध्यान में
रख कर अपना पूरा जीवन बिताना होता है
Yog ke Aath Ang |
2.
नियम – आचार्यो ने योग को
बनाए रखने के लिए कुछ नियम बनाए है जिन का वर्णन यम के बाद में किया गया है और
किसी भी चीज को बनाए रखने के लिया नियमो का होना बहुत जरुरी होता है
इन नियमो का पालन समाज से नही बल्कि मनुष्य के
शरीर से है इन नियमो का पालन करने से मनुष्य का मन,शरीर तथा दिमाग स्वस्थ व शुद्ध
बनता है यमो की तरह ये नियम भी पांच ही है
पतंजली में इनका उल्लेख भी किया गया है जो की
निम्निलिखित है :-
शोंच
– शोच से हमारा मतलब हमारे शरीर की अंदरूनी स्वछता को बनाए रखने से है जिससे हमारा
शरीर पवित्र बना रहता है
संतोष – संतोष का मतलब मन की संतुष्टि है. हमारे दिमाग की, हमारे शरीर की
जो हमे उससे करनी चाहिए जो हमे हासिल हुआ
है यानि हमे ज्यादा चीजो की मांग न करके कम चीजो में ही संतुष्टि होनी चाहिए.
संतुष्टि पाने से हमे शान्ति का प्रभाव होता है और जो हमारे दुखो का नाश करती है
तप –
योग में तप का मतलब हमारे दिमाग से है जो की हमे तब करना पड़ता है जब हम अपने दिमाग को किसी प्रकार की शान्ति या
संतुष्ट करते है तब हम इसे मानशिक तब कहते है या जब हम अपने शरीर , मन , आत्मा को
शान्ति प्रदान कराते है और हमे जो कष्ट होता है हम उसे तप कहते है
स्वाध्याय – ये शब्द एक प्रकार का शान्ति शब्द
है जो की सत्संग से मिला है यदि हम सत्संग सुनते है तो हमारी बहुत सी समस्याएं दूर
हो जाती है ऐसा करने से हमारे मन और मस्तिक को शान्ति प्रदान होती है इसी से हमे
संस्कारो की भी प्राप्ति होती है और इसे हमारे मन और मस्तिक में आस्था भी जागृत
होती है
ईश्वर
प्रणिधान – योग में ईश्वर को सर्वप्रथम माना गया है योग में ईश्वर में ध्यान लगाने
के लिए सबसे अधिक उचित माना गया है पतंजलि में भी ईश्वर को सर्वप्रथम गुरु माना
गया है पतंजलि में कहा गया है की हमे अपना सब कुछ ईश्वर को समर्पित कर देना चाहिए.
3.
आसन – अपने शरीर को स्वस्थ
रखने के लिए हम जो भी योग करते है उन्हें हम योग आसन कहते है इन आसनों को करने से
हमारे शरीर की आयु बढती है हमारा शरीर स्वस्थ बना रहता है
हमारे
शरीर के कार्य करने की शक्ति बढती है जिससे हमारा शरीर हर कार्य को करने में
सामर्थ होता है तथा हमारा शरीर रोग रहित बनता है.
4.
प्राणायाम – प्राणायाम से
हम अपनी बढती उम्र को रोक सकते है इस क्रिया से हम अपने मन, मस्तिक, तथा प्राण को
एक साथ उतेजीत कर सकते है यह क्रिया हमारे शरीर को शक्ति देने में बहुत महत्वपूर्ण
है इस क्रिया को करने के विवरण इस प्रकार है :-
१.
पुरी तरह से प्राणवायु को
लेना
२.
पूर्ण रूप से गहरी तथा लंबी
सांसे लेना
३.
अपनी आत्मा को ध्यान में रख
कर ईश्वर में धयान लगाना. एक बहुत ही कठिन कार्य है जो की करना बहुत ही मुस्किल है
परन्तु जो ये कार्य कर लेता है. वह एक सफल मनुष्य बनता है
5.
प्रत्याहार – प्रत्याहार करने
से हमारा मन शुद्ध और स्वच्छ बनता है. इसे करने से हमारे शरीर की सभी इन्द्रिया
स्वच्छ बनती है प्रत्याहार का मतलब हमारे जीवन की किसी भी प्रकार की उलझन से
मुक्ति पाना है हमे हमारे संसार के सभी रिस्तो से दूर रहना ही प्रत्याहार कहलाता
है
6.
धारणा – धारणा हमारे सफल
जीवन का रहयसे है जो भी मनुष्य धारणा पर बना रहता है उसका जीवन जरुर सफल बनता है
धारणा से हमारा दिमाग शुद्ध और विकशित होता है हमे अपने मन को एक विशेष पर बनाए
रहना ही धारणा कहलाता है.
7.
ध्यान – किसी चीज पर धारणा
करना की ध्यान कहलाता है. किसी भी कार्य पर अपने मन को ठहराना ही ध्यान है.
8.
समाधि – समाधि लेने पे आप
को सच में आनंद का प्रभाव होता है. समाधि लेने से मनुष्य के अंदर सत्य का आगमन
होता है.
इन आठों क्रिया को
करने से मनुष्य शरीर और आत्मा दोनों ही शुद्ध और पवित्र बनते है इन क्रिया को करने
से मनुष्य का मन, दिमाग, और शरीर दोनों ही स्वस्थ बनते है ऐसा करने से मनुष्य के
सभी कष्टों का निवारण होगा तथा वह अपना जीवन सुख और शांति से वर्तित करेगा.
योग के आठ अंग |
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Sir mere friend ka ek WiFi hai or uska password bhi muje pata hai lekin vo connect nahi ho raha aisa kyu
ReplyDeletesir iska koy solution yoga to bata dijiye ye mera number 7875433515 msg me