भारतीय संस्कृति में प्राचीन काल से ही स्वस्तिक को मंगल का प्रतीक माना जाता
है. जब हम कोई भी शुभ काम करते हैं तो सबसे पहले स्वस्तिक चिन्ह अंकित करते है और
उसकी पूजा करते हैं. स्वस्तिक का शाब्दिक अर्थ होता है अच्छा या मंगल करने वाला.
स्वस्तिक शब्द किसी जाति या व्यक्ति की और इशारा नहीं करता है. स्वस्तिक में सारे
विश्व के कल्याण की भावना समाई हुई है. स्वस्तिक सबके कल्याण का प्रतीक है. भारतीय
संस्कृति में स्वस्तिक को बहुत महत्वपूर्ण माना गया है. सब मुश्किलों को हरने वाले
भगवान् गणेश की पूजा, धन, वैभव की देवी लक्ष्मी की पूजा स्वस्तिक के साथ की जाती
है. शुभ लाभ, स्वास्तिक तथा बहीखातों की पूजा करने की परम्परा भारतीय संस्कृति में
बहुत पुरानी है. स्वस्तिक को सभी धर्मों में महत्वपूर्ण बताया गया है.अलग – अलग
देशों में स्वस्तिक को अलग – अलग नामों से जाना जाता है. सिन्धु घाटी की सभ्यता आज
से चार हजार पुरानी है. स्वस्तिक के निशान सिन्धु घाटी की सभ्यता में भी मिलते
हैं. बोद्ध धर्म में स्वस्तिक को बहुत महत्वपूरण माना जाता है. बोद्ध धर्म में
भगवान गौतम बुद्ध के ह्रदय के ऊपर स्वस्तिक का निशान दिखाया गया है. स्वस्तिक का
निशान मध्य एशिया के सभी देशों में मंगल एव सौभाग्य का प्रतीक माना जाता है. नेपाल
में स्वस्तिक की हेरंब के नाम से की जाती है. बर्मा में महा प्रियेन्ने के नाम से स्वस्तिक की
पूजा की जाती है. मिस्र में सब देवताओं के पहले कुमकुम के द्वारा क्रोस की आक्रति बनाई
जाती है. मिस्र में एक्टन के नाम से स्वस्तिक की पूजा की जाती है. मेसोपोटेमिया
में स्वस्तिक को शक्ति का प्रतीक माना गया है. अस्त्र-शस्त्र पर विजय प्राप्त करने
के लिए स्वस्तिक के निशान का प्रयोग किया जाता है. हिटलर ने भी स्वस्तिक के निशान
को महत्वपूर्ण माना था. स्वास्तिक जर्मन के राष्ट्रीय ध्वज में विराजमान है.क्रिस्चियन
क्रोस का प्रयोग करते हैं जो की स्वस्तिक का ही रूप है. जैन धर्म और सनातन धर्म
में स्वस्तिक को मंगल करने वाला माना गया है. वास्तु शास्त्र के अनुसार चार
दिशायें होती हैं स्वस्तिक से चारों दिशाओं का बोद्ध होता है. पूर्व, दक्षिण,
पश्चिम उतर. चारों दिशाओं के देव अलग अलग होते हैं. पूर्व के इंद्र, दक्षिण के यम,
पश्चिम के वरुण, उतर के कुबेर. स्वस्तिक की भुजाओं
से चारों उप दिशाओं का पता चलता है. स्वस्तिक के निशान में आठों दिशाओं को दिखाया
गया है. वैदिक धर्म में स्वस्तिक को भगवान् गणेश का स्वरूप माना जाता है. स्वस्तिक
की चारों दिशाओं से चार युगों का पता चलता
है. ये चार युग हैं सतयुग, त्रेता, द्वापर और कलयुग. स्वास्तिक के निशान से चार
वर्ण ब्राह्मण, छत्रिय, वैश्य ,शुद्र का पता चलता है. स्वस्तिक से चार
आश्रम ब्रह्मचर्य, गृहस्थ, वानप्रस्थ, सन्यास का ज्ञान होता है. चार पुरुषार्थ
धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष का ज्ञान होता है. चार वेद आदि के बारे में पता चलता है.
स्वस्तिक की चार भुजाओं से धर्म के सिद्धांतो का बोद्ध होता है. चारों दिशाओं में
भगवान् का दर्शन एक समान होता है. CLICK HERE TO READ MORE SIMILAR POSTS ...
स्वस्तिक क्या है महत्तव |
स्वस्तिक की चार भुजाओं से धर्म
के सिद्दांतों की जानकारी होती है. चारों दिशाओं से भगवान् का दर्शन एक समान रूप
से होता है. स्वस्तिक से हमें चार घातीयों कर्म ज्ञानावार्निया, दर्शानावेर्निय,
मोहनीय, अंतराय का बोध होता है. स्वस्तिक से हमें चार अनंत चतुष्टय अनंत्दर्शन,
अनंतज्ञान, अनंतसुख, अनंत वीर्य का ज्ञान होता है. कुछ विद्वान् स्वस्तिक की
रेखाओं को आग पैदा करने वाली अश्वत्थ और पीपल की दो लकड़ियाँ मानते हैं.स्वस्तिक की
इतनी जानकारी देने का उद्देश्य यही है कि स्वस्तिक के आकार में अनगिनत जानकारियाँ
व अनगिनत शक्तियां मौजूद हैं. शरीर को बाहर से साफ़ करके साफ वस्त्र पहनकर
ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करते हुए पवित्र भावना से नो अंगुल का स्वस्तिक बनायें. 90
डिग्री के एंगल में सब भुजाओं को एक समान रखते हुए स्वस्तिक बनाएं. ब्रह्म मुहूर्त
में विधि के अनुसार केसर से, कुमकुम से, सिन्दूर और तेल को मिलकर अनामिका अंगुली
से स्वस्तिक बनायें. ऐसा करने से घर के वातावरण में थोड़े समय तक अच्छा परिवर्तन हो
जाता है.
Swastik kya hai Mahattav |
बोविस यन्त्र द्वारा स्वस्तिक की जाँच करने से पता चलता है कि स्वस्तिक
के अन्दर लगभग एक लाख सकारात्मक उर्जाओं का वास होता है. घर के मुख्य द्वार पर और
हर कमरे के द्वार पर स्वस्तिक अंकित करने से सकारात्मक उर्जाएं घर के अन्दर आ जाती
हैं.
What is Swastika Importance |
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Shukra swastika ke laabh
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